देश के चोथे स्तंभ तुम्हीं हो ,पत्रकार कहलाते हो। सरस्वती माँ की विशेष कृपा,लेखनी कार कहलाते हो
देश के चौथे स्तंभ पत्रकार बंधुओं को समर्पित -कवि ललित शर्मा
बहरोड़ राजस्थान
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देश के चोथे स्तंभ तुम्हीं हो ,पत्रकार कहलाते हो।
सरस्वती माँ की विशेष कृपा,लेखनी कार कहलाते हो।।
कोई नहीं हथियार तुम्हारा,कलम से युद्ध तुम लड़ते हो।
ईमानदारी रग रग में तुम्हारी,उसके जुनून में अकड़ते हो।।
मजलूमों का हक़ दिलवाते,कमजोर के पक्षकार हो।
सीना चौड़ा कलम हाथ में,मेरे देश के तुम पत्रकार हो।।
दुनिया चाहे कुछ भी बोले,समाज को आइना दिखाते हो।
चाहे कितना ऊंचा अपराधी,तनिक नहीं घबराते हो।।
डर से ना तुम डरने वाले,सच्ची सच्ची कहते हो।
कितना भी देदे लालच,भाव में ना तुम बहते हो।।
घर का गुज़ारा जो भी हो,उसकी करते परवाह नहीं।
उसुल तोड़ दे जो काम कोई,उससे बिल्कुल नीबाह नहीं।।
घर खर्च भी मुश्किल से चलता,दिन भर मारे फिरते हैं।
ना तनख्वाह ना कोई भत्ता,बिना सहारे फिरते हैं।।
नई उन्नति सोच में तुम्हारी,उसके तुम चित्रकार हो।
सीना चौड़ा कलम हाथ में,मेरे देश के तुम पत्रकार हो।।
दुर्गम स्थानों से खबर जुटाते,जान पे अपनी खेलते हो।
आंधी पानी मिट्टी बारिश,जाने क्या क्या झेलते हो।।
समय हो देते अपने कार्य को,परिवार की परवाह बाद में।
अपने फ़र्ज़ पर जान हो देते,दुनिया रोती रहे याद में।।
ललित शर्मा की कलम आपकी,कलम के आगे लाचार हो।
सीना चौड़ा कलम हाथ में,मेरे देश के तुम पत्रकार हो।।
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कवि ललित शर्मा