वैर में आज भी कायम है टेसूला और झांझी को सजाने का प्रचलन
कस्बा वैर सहित आसपास के ग्रामीण अंचल में पौराणिक परंपराओं को आज भी बच्चों, युवाओं और बेटियों द्वारा सभी के दिलों में जिंदा रखा जा रहा है। इस पुरानी परंपरा के तहत सभी रीति-रिवाज को निभाते हुए नवरात्रा स्थापना से दशहरा तक दुकान दुकान घर-घर जाकर मिट्टी से बने टेसूला और झांझी की आकृति को अपने हाथ और सिर पर रखकर लोकगीत टेसूला टेसूला घंटार बजे दस नगरी दस गांव बसे गाते हुए समाज सुधार का संदेश, कन्या भ्रूण हत्या ,बाल विवाह पर रोक लगाने का संदेश देते हुए नजर आते हैं। जिसे देखकर लोग इन बच्चों को उपहार देकर उनका मनोबल बढ़ा रहे हैं। वहीं बुजुर्गों ने बताया कि पांडव पुत्र भीम के बेटे घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को महाभारत के युद्ध में भाग न लेने के लिए श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काटकर पहाड़ी पर एक पेड़ पर रख दिया था ।युद्ध के बाद बर्रबरीक की इच्छा पूरी करने के लिए शरद पूर्णिमा को टेसुला और झांझी का विवाह किया जाता है। तभी से यह परंपरा चली आ रही है टेसूला की आकृति तीन लकड़ी उस पर एक ओर टेसू राजा दूसरी ओर मंत्री और चौकीदार है। वहीं टेसूला और झांझी लेकर उपहार लेने आए बच्चों ने बताया कि पुरानी परंपरा और संस्कृति को युवाओं के दिलों में कायम रखने का संदेश देते हुए अपने हाथों से बने मिट्टी के टेसूला और झांझी के साथ बाजार और घरों में जाकर गीत गाकर समाज में फैली कुरुतियों को दूर करने का आवाह्नन करते हैं। जिससे खुश होकर लोग हमें उपहार और आशीर्वाद देते हैं। विजयदशमी दशहरा के दिन टेसुला और झाझी की आकृति को शुद्ध जल, नदी, तालाब आदि में विसर्जन करते हुए भगवान से परिवार में सुख, शांति, समृद्धि एवं विश्व कल्याण की कामना की जाती है।