क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी?
लक्ष्मणगढ़ (अलवर/कमलेश जैन )नरक चतुर्दशी का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इसे रूप चौदस, नरक चतुर्दशी, छोटी दिवाली, नरक निवारण चतुर्दशी या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। आज के दिन मृत्यु के देवता यमराज, मां काली और श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है। सूर्योदय से पहले स्नान करके यम तर्पण और शाम के समय दीप दान करने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन दीपक जलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। अकाल मृत्यु से मुक्ति और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए नरक चतुर्दशी की पूजा की जाती है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 11 नवंबर 2023 को दोपहर 01:57 बजे से हो रहा है। यह तिथि अगले दिन 12 नवंबर 2023 को दोपहर 02:44 बजे समाप्त होगी। नरक चतुर्थी के दिन रूप को निखारा जाता है, जिसके लिए सुबह स्नान करने की परंपरा है। इसलिए उदया तिथि को मानते हुए नरक चतुर्दशी 12 नवंबर को मनाई जाएगी। इसी दिन बड़ी दिवाली भी है। हालांकि, जो लोग मां काली, हनुमान जी और यमदेव की पूजा करते हैं वे 11 नवंबर को नरक चतुर्थी यानी छोटी दिवाली का त्योहार मनाएंगे।
क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी?
योग शिक्षक पंडित लोकेश कुमार ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्राचीन काल में नरकासुर नामक राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और ऋषि-मुनियों समेत 16 हजार एक सौ सुंदर राजकुमारियों को बंधक बना लिया था। इसके बाद नरकासुर के अत्याचारों से पीड़ित देवता और ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और 16 हजार एक सौ कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त कराया। कैद से मुक्त कराने के बाद समाज में सम्मान दिलाने के लिए श्रीकृष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह किया। नरकासुर से मुक्ति पाकर देवता और पृथ्वीवासी बहुत प्रसन्न हुए। माना जाता है कि तभी से इस त्योहार को मनाने की परंपरा शुरू हुई।