दवाओं की आड़ में तेजी से फल-फूल रहा नशे का कारोबार: जिम्मेदारो को कानों कान खबर नहीं
उदयपुर (उदयपुर, राजस्थान/ मुकेश मेनारिया) जिले में दवाइयों की आड़ में नशे का कारोबार तेजी से फल फूल रहा है। ऐसी दवाएं, जो बिना बिल के खरीदी या बेची नहीं जा सकती है, या जिन पर कई प्रकार की पाबंदिया हैं, उन्हें यहां कानून की ताक में रख बेधड़क बेचा-खरीदा जा रहा है। कुछ मामले तो नियमित जांच के दौरान औषधि विभाग की पकड़ में आ जाते हैं, तो कई मामले ऐसे होते हैं, जिसकी किसी को कानों कान खबर नहीं होती है। बीते दो वर्ष में इस तरह की नशे की दवाइयां बिना नियमों से रखने, बेचने, खरीदने के दस से ज्यादा मामले पकड़े गए हैं।
ये है नशे वाली पाबंदियों की दवाइयां- इन दवाइयों को बिना नियमों से नहीं रखा जा सकता है, नशेडि़यों को इन दवाओं की अनियंत्रित जरूरत होती है। यदि कभी चिकित्सक लिख भी देता है तो वह लगातार इस एक पर्ची पर नहीं ले पाता है, ऐसे में वह कालाबाजारी के जरिए इन दवाओं के अधिक दाम चुकाकर खरीदता है। कई ऐसे युवा भी इन दवाओं की गिरफ्त में हैं, जो घर वालों के सामने ही इन दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन किसी को इनके नशे के इरादे की भनक तक नहीं लगती। विभाग या पुलिस द्वारा पकडे़ जाने पर स्मॉल क्वांटिटी व लार्ज यानी कॉर्मशियल क्वांटिटी में मामला दर्ज होता है।
- ट्रामाडोल- दर्द निवारक
- एल्प्राजोलम- एंटीडिप्रेसेंट- कोडिन- खांसी
- क्लोनाजिपाम- एंटीडिप्रेसेंट- डाइफिनोक्सिलेट- एंटीडिप्रेसेंट
गांव भी अछूते नहीं गांव भी इस पूरे नशे के कारोबार से अछूते नहीं है। खास बात यह है कि औषधि नियंत्रण विभाग के पास चार औषधि नियंत्रण अधिकारी है, जबकि एक सहायक औषधि नियंत्रक है।
ऐसे में पूरे जिले पर नजर, जांच व कार्रवाई संभव नहीं हो पाती। गत वर्षों में वल्लभनगर, खेरोदा, मोडी में भी नशे की दवाइयां पकड़ी जा चुकी है। गांवों में ज्यादातर कोडि की दवा की खरीद फरोख्त बेरोकटोक है।
ये है अपराध: - बिना बिल के दवाइयां रखना व बेचना- बिना लाइसेंस के दवाइयां बेचना
- बिना लाइसेंस के दवाइयां स्टोर करना,बेचना व खरीदना- नशे की दवाइयां बिना बिल व लाइसेंस के है तो एनडीपीएस में मामला दर्ज होता है। यह गैर जमानती अपराध की श्रेणी में है।