अपने से अधिक गुणवान की संगत से गुण ग्रहण करने चाहिए: आचार्य विनीत सागर
कामां (भरतपुर, राजस्थान/ मुकेश कुमार) स्वयं के अंदर छुपी योग्यता को न पहचान कर दुसरो की योग्यता से ईर्ष्या रख कर व्यक्ति अपने मन मे कुंठा पाल लेता है और कुंठित हो अनर्गल विचार व्यक्त करने लगता है। जबकि यदि वह अपने से अधिक गुणवान के सम्पर्क में रह उसके गुणों को ग्रहण करें तो स्वयं भी प्रशंसा का पात्र बन सकता है। यदि स्वयं की प्रशंसा चाहते हो तो दूसरों की प्रशंसा करना सीखना ही होगा उक्त विचार विजय मती त्यागी आश्रम में वर्षायोगरत दिगंबर जैन आचार्य विनीत सागर महाराज ने गुरु भक्ति के दौरान व्यक्त किए।
आचार्य ने कहा कि ईर्ष्या और प्रशंसा समानांतर रूप से चलने वाली प्रक्रिया है । यदि आप किसी व्यक्ति से लगाव रखते हैं तो उसकी सामान्य बात की भी बहुत बड़ी प्रशंसा करने लगते हैं, और यदि आप किसी से किंचित मात्र भी मनभेद,जलन, ईर्ष्या रखते हैं तो फिर आप उसकी कितने ही बड़े काम की प्रशंसा नहीं कर पाते हैं सिर्फ कमियां ढूढते रह जाते हैं। विस्तार से विवेचन करते हुए कहा कि सार्वजनिक रूप से किसी की प्रशंसा करना वर्तमान समय में कठिन कार्य बनता जा रहा है । आप स्वच्छ मन से किसी की प्रशंसा करते हैं तो आपके भाव बड़े ही निर्मल होते हैं लेकिन प्रशंसा में भी यदि कुटिलता छुपी हुई है तो फिर आप के भावों में परिवर्तन आ जाना स्वाभाविक है। आचार्य ने कहा कि ईर्ष्या, जलन, कुढ़न ,विद्वेष, मतभेद सब को दरकिनार करते हुए प्रशंसक बनाना सीखना बहुत बड़ी कला है।और इस कला को प्रत्येक व्यक्ति को धारण करना चाहिए अतः हमेशा ईर्ष्यालु नहीं प्रशंसक बने। दुसरो की कमियों को ढूंढने की बजाय गुण ग्रहण का भाव रखो। सकल जैन समाज कामां द्वारा संचालित निशुल्क औषधालय के वर्ष 2022 - 23 के संचालन का सौभाग्य कमला देवी पत्नी स्व श्रीमान ओमप्रकाश बड़जात्या, उदयभान जैन,अनीता जैन जयपुर ,खगेंद्र ,इंदु, एवं रितेश बड़जात्या परिवार कामां को प्राप्त हुआ तो जैन समाज द्वारा परिवारीजनों का सम्मान किया गया।