देव हिरामल की कलयुग में बढ़ती जा रही है मान्यता:मंदिर पर जाकर सामाजिक बुराइयों का परित्याग कर रहे हैं लोग
गुढ़ागौड़जी / दिनेश जाखड़
कलयुग में भगवान देवनारायण हिरामल की मान्यता दिनों दिन बढ़ती जा रही है। लोग देवनारायण भगवान को अपना इष्ट मानकर सामाजिक बुराइयों के परित्याग कर रहे हैं । वर्तमान समय मे गांव गांव में हिरामल के मंदिर बने हुए हैं। इनके मंदिर को लोग थान के नाम से जानते हैं। एक थान पर अनेक पुजारी होते हैं। जिन्हें गोठिया के नाम से जाना जाता है। इन्ही गोठियो में से एक को गुरु माना जाता है। जो सबसे बड़ा पुजारी और वरिष्ठ होता । सब पुजारी उनका आदेश मानते हैं। गोठिया सफेद रंग की धोती और कुर्ता पहनते हैं। सर पर सफेद पगड़ी रहती है।
इनका होता है ईलाज
हिरामल के मंदिर पर सांप काटे हुए का ईलाज होता है। गोठिया अपने इष्ट देव को याद कर उसका ईलाज करता है और झाड़ा लगाकर उसका जहर उतरता है। इसके साथ ही प्रेत आत्माओं से भी मंदिर पर छुटकारा मिलता है।
भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं देव नारायण
देव नारायण भगवान को इनके भक्त भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। इनकी धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु ने मानव समुदाय का उद्धार करने व समाज मे फैल रहे पाप को नष्ट करने के लिए देव नारायण के रूप में धरती पर जन्म लिया था। देव नारायण का जन्म सन 968 को भाद्रपद शुक्ल सप्तमी की रात को मालासेरी डूंगरी में हुआ था। इनकी माता का नाम साडू खटाना था जो 24 बड़गावत भाइयों में सवाईभोज की पत्नी थी। इनकी मान्यता है कि राणा दुर्जनसाल के साथ युद्ध मे सभी बड़गावत भाई मारे गए थे तब इनकी माता देवनारायण को अपने पीहर मालवा ले गई थी। उसके बाद जवान होकर अपने गांव में आकर बदला लिया था।
देव स्थान पर आने वालो को छोड़नी पड़ती है बुरी आदतें
गुढ़ाबावनी में बने मंदिर के गोठिया राकेश कस्वां ने बताया कि देव नारायण हिरामल के थान पर आने वाले भक्तों को मंदिर के पुजारी शराब व मांस जैसी बुरी आदतें छोड़ने का बंधन देते हैं। उसके बाद भी अगर किसी ने शराब मदिरा का सेवन कर लिया तो उसे मंदिर के पास ही नही आने दिया जाएगा। मंदिर के गुरुजी ग्यारसी लाल का कहना है कि मंदिर पर दिए गए बंधन तोड़ने पर हिरामल महाराज उन्हें सजा देते हैं। इसके साथ ही मंदिर पर गोठिया बनने वाले के घर मे भी कोई मांस मदिरा सेवन नही करना चाहिए