केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मकदूम के वैज्ञानिकों ने महिलाओं को सिखाए आधुनिक बकरी पालन गुर
वैर (भरतपुर, राजस्थान/ कौशलेंद्र दत्तात्रेय) मंजरी फाउन्डेशन एवं केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान(सी.आई.आर.जी) फरेह के द्वारा कस्वा सरमथुरा में अनुसूचित जनजाति की कृषक एवं पशु पालक महिलाओं एक दिवसीय बकरी पालन प्रशिक्षण दिया गया,जिन्हे केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बकरी पालन का ज्ञान एवं गुर सिखाए और बकरी पालन से परिवार की आय बढाना एवं स्वय का रोजगार स्थापित की जानकारी दी। प्रशिक्षण में 100 महिलाएं लाभाविन्त हुई,जिन्हे केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के द्वारा बेग,दवा किट,छाता,पशु अहार बेग,फीडर,केल्सियम की बोलत,हिमालय बत्तीसा आदि प्रदान किए गए। केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मकदूम के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अनुपम दीक्षित नें कहा कि आज पौराणिक समय से ही पशुपालन का एक अभिन्न अंग रहा है। भूमिहीन कृषि श्रमिक, छोटे सीमांत किसान तथा सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों में बकरी पालन की लोकप्रियता अत्यधिक है। बहुउद्देशीय उपयोगिता एवं सरल प्रबंधन पशुपालकों में बकरी पालन की ओर बढ़ते रुझान के प्रमुख कारण हैं। भारत में बकरियों की संख्या 1351.7 लाख है | भारत में होने वाले कुल दुग्ध और मांस उत्पादन में बकरी का उत्कृष्ट योगदान है । उन्होंने कहाँ कि बकरी पालन व्यवसाय से लाभ कमाने के लिए बकरियों में पोषण, स्वास्थ्य एवं प्रजनन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। वज्ञैानिक तरीकों को अपनाकर बकरी पालन से अधिक लाभ कमाया जा सकता है। डॉ दीक्षित नें बकरियों के लिए आवास प्रबंधन के बारे में बताते हुए कहाँ कि बकरी के आवास की लंबाई वाली भुजा पूर्व-पश्चिम दिशा में होनी चाहिए। लंबाई वाली दीवार को एक से डेढ़ मीटर ऊंचा बनवाने के पश्चात दोनों तरफ जाली लगानी चाहिए। बाड़े का फर्श कच्चा तथा रेतीला होना चाहिए। उसमें समय-समय पर बिना बुझे चूने का छिड़काव करते रहना चाहिए। वर्ष में एक से दो बार बाड़े की मिट्टी बदल देनी चाहिए। बकरा, बकरी तथा मेमनों को (ब्याने के एक सप्ताह बाद) अलग-अलग बाड़ों में रखना चाहिए। अधिक सर्दी, गर्मी व बरसात में बकरियों के बचाव का व्यापक रूप से प्रबंध करना चाहिए। इस प्रशिक्षण के दौरान केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान मकदूम की वैज्ञानिक डॉ निकिता शर्मा नें जानकारी देते हुए बताया कि बकरियों को प्रजनन काल के एक माह पूर्व से ही पचास से सौ ग्राम तक दाना अवश्य देना चाहिए, तो जिससे स्वस्थ बकरी से अधिक मेमने पैदा हो सकें। इसी प्रकार बकरों को भी प्रजनन काल के दौरान प्रतिदिन सौ ग्राम दाना अतिरिक्त मात्रा में देना चाहिए। बकरियों को साफ पानी पिलाना चाहिए। नदी, तालाब व गड्ढे में जमा हुए गन्दे पानी को पीने से बकरियों को बचाना चाहिए। मंजरी फाउंडेशन के निदेशक संजय शर्मा नें बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी हमेशा से ही आजीविका के सुरक्षित स्रोत के रूप में पहचानी जाती रही है| बकरी छोटा जानवर होने के कारण इसके रख-रखाव में लागत भी कम होता है| इसकी देखभाल का कार्य भी महिलाएं एवं बच्चे आसानी से कर सकते हैं और साथ ही जरुरत पड़ने पर इसे आसानी से बेचकर अपनी जरूरत भी पूरी की जा सकती है|