गायों के प्रति युवाओं का दिखा विशेष लगाव: किरश्चन युवक की भी घायल गाय के प्रति देखी हमदर्दी
इससे साफ जाहिर होता है मजहब नहीं सिखाता......
मोब लिंचिंग के लिए गोरक्षकों को एक तरफा दोषी ठहराना भी शायद उचित नहीं: कतिपय हिन्दू परिवार जीते है दोहरी जिंदगी
लेखन- राजीव श्रीवास्तव
दरअसल में शनिवार रात करीब सवा ग्यारह बजे लाल डिग्गी चौराहे पर युवकों की भीड़ देखकर रुक गया।वहाँ देखा कि एक शराब के नशे में धुत्त कार चालक को युवकों ने पकड़ रखा था और उससे मारपीट करने की कोशिश कर रहे थे,लेकिन कुछ सुलझे हुए गऊ प्रेमियों ने कार चालक पर हाथ उठाने से युवकों को मना कर दिया।असल में हुआ यूं कि एक कार चालक युवक ने लाल डिग्गी चौराहे पर एक गाय को इतनी जबरदस्त टक्कर मारी की गाय के शरीर से जगह जगह से खून बहने लगा और उसके बाद वह गाय अधमरी होकर सड़क पर गिर गई।इसके बाद वह गाय अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो पाई।वहाँ से गुजर रहे युवकों से गाय को तड़पते देखा और अपने स्तर पर ही वहाँ गाय का इलाज करने लगे,उसके मुंह मे पानी डालकर उसको होश में लाने का प्रयास करने लगे।दूसरी तरफ युवकों ने पुलिस और नगर परिषद को सूचना भी दी।कुछ देर में ही नगर परिषद की टीम घायल गाय को पशु अस्पताल ले गई।
यूँ पकड़ा गया कार चालक:- असल में गाय को टक्कर मारने से कार की नंबर प्लेट वही गिर गई।नंबर प्लेट देखर उस कार चालक को कुछ दूरी पर ही युवकों ने पकड़ लिया।इन युवकों में एक ईसाई धर्म को मानने वाला युवक भी था।यह देखकर मैं हैरान रह गया कि जिस युवक का धर्म अलग है,फिर शायद सोच भी अलग ही होगी। फिर भी उसका गाय के प्रति इतना लगाव है।ऐसा महसूस हुआ कि शायद ही किसी धर्म में जानवरों के प्रति कोई क्रूरता वर्णन है, क्रूरता शायद इंसान के भेजे की उपज है। आस्था ,लगाव किसी भी धर्मप्रेमी की किसी से भी हो सकती है।
दरअसल, मैंने व्यक्तिगत तौर पर भी अहसास किया कि हमारी गली में दो ईसाई परिवार है उनको देखकर लगता ही नहीं है कि उनका किसी अन्य धर्म से ताल्लुक है।असल में वो परिवार गली में आने वाले तमाम भगवाधारी का सम्मान करते है और दान भी देते है।होली, दीपावली, राखी सहित तमाम हिंदू त्योहारों को उसी तरह मानते है,जिस प्रकार हिन्दू हर्ष उल्लास से मनाते है।गर्भवती कुतिया और गाय को देखकर उसकी प्रतिदिन सेवा करते है, जब तक उसके बच्चे ठीक से चलने नहीं लग जाए है।जबकि ठीक इसके विपरीत हिन्दू धर्म के परिवार गाय की सेवा करना तो दूर गाय को ही घर के आगे से सिर्फ इसलिए भगा देते है,कही गाय घर के आगे गोबर नहीं कर जाए और ये वही हिन्दू लोग या परिवार होते है,जो दीपावली के बाद गोबर से गोवर्धन महाराज बनाकर उनकी नाभि में से ही दही का प्रसाद लेकर खाते है।ये वही महिलाएं होती है जो प्रतिदिन गायों को अपने घर से लाठी से मार कर भगा देती है और गोवर्धन महाराज की लाल साड़ी पहनकर ऐसी पूजा करती है जैसे मानों उनकी ही गोवर्धन महाराज में आस्था है।भगवान बचाएं ऐसे दोहरी जिंदगी जीने वाले हिन्दू परिवारों से खैर, उस ईसाई परिवार में मैंने एक ऐसी महिला को भी देखा है कि वह मन्दिर के बगल से निकलते समय मन्दिर के आगे अपना सिर अवश्य झुकाती है ।कहने का अर्थ यह है कि संकीर्ण मानसिक के कतिपय लोग ही दूसरे धर्म की भावना को आहत करने के लिए गोतस्करी,गौवध में शामिल है। ऐसा महसूस होता है की गोतस्कर गोभक्तों या फिर हिन्दू संगठनों से जुड़े हुए लोग के ही शिकार नहीं होते बल्कि किसी की भी आस्था को भड़काने पर उपद्रव तो होगा ही। मोबलिंचीग में एक तरफा गोरक्षकों को दोषी ठहराना भी उचित नहीं है।