यूरिया की किल्लत या कालाबाजारी: मनमर्जी दरों पर कब लगेगी रोक
थानागाजी (अलवर,राजस्थान) रबी फसल की बुवाई प्रारंभ होते ही पिछले चार-पांच सालों से यूरिया व डीएपी के बैंग बाजार से एका एक गायब हो जाते हैं, दूसरी तरफ यूरिया डीएपी किसानों को दोगुने दामों पर खरीदने को मजबूर कर देता है।
रामभरोस मीणा ने बताया कि गांवों में खाद के एजेंट 450 से 500 रुपए तक यूरिया खुले में बेच रहे जबकि खाद बीज की दुकानों से उसे एक किलो यूरिया डीएपी मिलना मुश्किल हो रहा है। एजेंटों द्वारा 450 से 500 रुपए यूरिया व 1750 से 1850 तक डीएपी का बैग ब्लैक से बेचा जा रहा है। अलवर जिले के अलावा जयपुर के सभी शहरों में यूरिया व डीएपी बहुतायत में वर्तमान में उपलब्ध है लेकिन वहां भी सरकारी निर्धारित दर पर ना बेचकर दूने दामों पर दुकानदार बेच रहे हैं। जयपुर के विराट नगर पावटा शाहपुरा कोटपूतली में 450 के बैग बेचे जा रहे हैं ।
यूरिया डीएपी की इस बंदरबांट से किसानों को भारी नुकसान के साथ ही एजेंटों में खुशी की लहर दौड़ी जा रही है इस प्रकार की व्यवस्था में आई डीएपी यूरिया की कमी नहीं बल्कि कालाबाजारी कही जा सकती है। एल पी एस विकास संस्थान के निदेशक रामभरोस मीणा ने कहा कि सरकार व कृषि विभाग को इस व्यवस्था को लेकर कठोर कदम उठाने चाहिए, जिससे यूरिया व डीएपी की हर वर्ष बढ़ती कालाबाजारी तथा मनमर्जी की दरों पर रोक लगने के साथ सभी किसानों को खाद उपलब्ध हो सके।