जब सारा समाज ही भेष बदल रहा है तो हमे कोई क्यों पुछेगा क्योंकि हम है बहरूपिया

Apr 16, 2022 - 04:25
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जब सारा समाज ही भेष  बदल रहा है तो हमे कोई क्यों पुछेगा क्योंकि हम है बहरूपिया

राजस्थान ,बृजेश शर्मा

भारत में बहुरूप धारण करने की कला बहुत पुरानी है. राजाओं-महराजाओं के समय बहुरूपिया कलाकारों को हुकूमतों का सहारा मिलता था. लेकिन अब ये कलाकार और कला दोनों मुश्किल में है.
इन कलाकारों का कहना है कि समाज में रूप बदल कर जीने वालों की तादाद बढ़ गई है. लिहाजा बहरूपियों की कद्र कम हो गई हैनइन कलाकारों में हिंदू और मुसलमान दोनों हैं. मगर वे कला को मज़हब की बुनियाद पर विभाजित नहीं करते. मुसलमान बहरूपिया  जो कई वर्षों से इस कला को प्रोत्साहित करते रहे हैं. वो कहते है, “ये कला बहुत बुरे दौर से गुज़र रही है. मेरे ख़्याल से सबसे ज़्यादा बहरूपिया कलाकार राजस्थान में ही हैं. पूरे देश में कोई दो लाख लोग हैं जो इस कला के ज़रिए अपनी रोज़ी-रोटी चलाते हैं.”राजस्थान के अजमेर जिले के सरवाड़ निवासी  एस राजा कलाकार,को ये फ़न अपने पुरखों से विरासत में मिला है. वो बड़े मन से इस कला का प्रदर्शन करते हैं,राजा कहते हैं, “हमें पुरखों ने बताया था कि बहरूपिया बहुत ही ईमानदार कलाकार होता है. राजाओं के दौर में हमारी बड़ी इज़्जत थी. हमें ‘उमरयार’ कहा जाता था. हम रियासत के लिए जासूसी भी करते थे. राजपूत राजा हमें बहुत मदद करते थे और अजमेर में ख्वाज़ा के उर्स के दौरान हम अपनी पंचायत भी करते थे. आज हर कोई भेस बदल रहा है. बदनाम हम होते हैं. लोग अब ताने कसते हैं कि कोई काम क्यों नहीं करते.”

विदेशों में प्रदर्शन

राजा ने यह भी बताया कि उनके पिता राजा बाबू एक अंतरराष्ट्रीय कलाकार हैं, उन्हें कई अवार्ड से नवाजा गया, है वे 25 से 30 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं।
राजा ने बताया की बहुरूपिया कलाकार को राजाओं के दरबार में काफ़ी इज़्जत मिलती थी
ज़्यादातर बहरूपिया कलाकार बड़े मंचो से वंचित रहते हैं. वे फ़ुटपाथ पर अपना मजमा लगाते हैं और लोगों का मनोरंजन करते हैं. सरवाड़ के एस राजा  बहरूपिया  इससे अलग हैं. राजा,नारद व मेरा नाम जोकर की नकल हूबहू कर लेते हैं
. वो अब तक क़रीब सम्पूर्ण देश मे अपने हुनर का प्रदर्शन कर चुके हैं.
राजा का कहना है, ''हमारे समुदाय से कई परिवार अब इस कला से हट गए हैं. क्या करें पेट तो भरना ही होगा.”
राजा  कहते हैं कि बहरूपिया के 52 रूप है. जो भय पैदा कर दे वो ही बहरूपिया है
ये कहते हैं, “हम इस कला को ज़िंदा रखना चाहते हैं. हम हिंदू भेस धारण कर मुस्लिम बस्तियों में जाते हैं और प्रेम और भाईचारे का संदेश देते हैं.”
नए नए रूप धारण करने के चलन का ज़िक्र महाभारत में भी है. महाभारत में भगवान कृष्ण के कई रूप धारण करने की बात है और उन्हें छलिया भी कहा गया.
मगर अब जैसे भारत में 60 साल की कहानी रुख़ से नक़ाब हटने का किस्सा बन गई हो. कभी किसी धार्मिक हस्ती का चेहरा बेनकाब होता है तो कभी किसी नेता का.
एक कलाकार ने अपना नाम नही छपने की शर्त पर बताया की  सारा दोष ही नेताओं के सर मढ़ते हैं. कहते हैं कि जब सारा समाज ही भेस बदल रहा तो हमें कोई क्यों पूछेगा, नेता ही सबसे बड़े लिबास बदलने वाले हैं.
ये कलाकार जब अपना हुनर दिखाते हैं और दावा करते हैं कि वे ही  ही असली बहुरूपिए हैं तो तमाशबीन चक्कर में पड़ जाते हैं. उन्हें लगता फिर वो कौन हैं जो ऊँचे मुकाम और मंचो पर बैठे हैं.

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