शहनाई की बदौलत देश-विदेश में बनी भोजपुर गांव की बड़ी पहचान
अलवर, राजस्थान
खैरथल- हरसोली के मध्य बसे भोजपुर गांव ने शहनाई की बदौलत देश- विदेश तक पहचान बनाई है । गांव के लोगों के लिए शहनाई रोजी-रोटी का साधन है। कई देशों में गांव की भोजपुरी शहनाई के लिए अलग ही पहचान है। इस गांव में 80 परिवार है और लगभग एक हजार की जनसंख्या है। हालांकि शहनाई से गांव के कुछ लोग 1947 से ही जुड़े हुए थे।1947 में सिंध प्रांत से आए 16 परिवार भोजपुर गांव में आकर बसे थे।1947 से इस गांव के नट जाति के लोग गांवों में खेल- तमाशा दिखाना व शहनाई बजाने का कार्य करते थे। गांव के लगभग सभी लोग नशे के आदी थे। इससे उनकी आर्थिक व शैक्षिक स्थिति दयनीय हो गई। वर्ष 1995 के दौरान गांव में जागृति आई। गांव के ही पेशुराम,किशन लाल, बसंत राम,मिर्चूमल, जलेसिंह, जवाहर सिंह, बाबा दयाल सिंह,किशनु राम,धन्ना राम,दुले सिंह,साहिब राम आदि ने गांव की दयनीय हालत देखते हुए सुधारने व नशामुक्ति का संकल्प किया। इसके लिए इन लोगों ने गांव में घर- घर जाकर संपर्क किया और लोगों को समझाया। वर्ष 1996 में गांव में सर्व सम्मति से निर्णय किया गया कि नशा करने वाले पर 1200 रुपए का जुर्माना होगा। इस निर्णय का कड़ाई से पालन हुआ। इसके चलते गांव के लोग नशे से दूर होकर शहनाई वादन में लग गए। वर्तमान में इस गांव में 20 शहनाई मंडली है। प्रत्येक मंडली में पांच से छह सदस्य हैं। इस गांव में आज भी यह आलम है कि गांव की औरतें मजदूरी के लिए दूसरी जगह नहीं जाती है।
शिक्षित होने का मिला लाभ :- 1996 में नशा मुक्त होने के बाद गांव के बच्चे पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगे। वर्तमान में गांव के दो दर्जन युवक ग्रेजुएट हैं। मिडिल क्लास तक गांव में अध्ययन कर रहे हैं। गांव के मुखिया पेशुराम ने बताया कि 1947 में सिंध से आने के बाद सरकार ने सभी 16 परिवारों को 16-16 बीघा कृषि भूमि का आवंटन किया था। लेकिन नशे के आदी व अनपढ़ होने के कारण कुछ भूमि पर प्रभावशाली लोगों ने हड़प ली।1996 में नशा मुक्त होने व शिक्षित होने पर जागृति आई। गांव ने एक जुट होकर कोर्ट में केस किया। इसमें जीत हासिल हुई, लगभग चालीस बीघा भूमि वापिस मिल गई।
इन स्थानों पर गूंजी शहनाई :- नशा मुक्ति के बाद शहनाई की गूंज बढ़ने लगी। इस गांव के लोग अब मुंबई, दिल्ली, गोवा, जम्मू-कश्मीर, कलकत्ता, बिहार, यूपी सहित देश के अन्य भागों में शहनाई बजाने के लिए जाते हैं। इसके अलावा शहनाई वादन में नेपाल, शारजहां, दुबई,केन्या में भी अपनी धूम मचा चुके हैं। इन देशों में हर साल दो से तीन बार गांव की शहनाई मंडलियां जाती है।
कलेक्टर ने लिया था गोद:- 1992 में तत्कालीन जिला कलेक्टर ने गांव को सुधारने के लिए गोद लिया था। लेकिन सरकारी मदद कुछ नहीं मिली। आठवीं कक्षा तक स्कूल है।आदर्श गांव होने के बाद भी विकास नहीं हो सका है।