खेडली मे जैन मुमुक्षु ने ली श्री वीरसुंदर विजय महाराज के रूप मे विधी विधान से दीक्षा
कठूमर (अलवर, राजस्थान/ जीतेन्द्र जैन) खेडली मे जैन मुमुक्षु अरिहंत कुमार की श्री वीरसुंदर विजय महाराज के रूप मे पदवी - प्रव्रज्या महाेत्सव मे नूतन दीक्षा विधी विधान से हुई। इस दाैरान पूज्य मुनि निर्माेहसुदंर विजय महाराज द्वारा लिखित किताब का विचाेमन और स्वामीवात्सल्य कार्यक्रम भी आयाेजित किया गया। जानकारी के अनुसार खेडली कस्बा मे पहली वार त्रिदिवसीय पदवी- प्रव्रज्या महाेत्सव के अंतिम दिन जैन मुमुक्षु अरिहंत कुमार ने परम् पूज्य श्री वीरसुंदर विजय महाराज के रूप मे नूतन दीक्षा मे अपने गृहस्थ जीवन काे त्यागकर जैन परम्पंरा के अनुरूप विधी विधान से दीक्षा ली है।
वही पंन्यास प्रवर धैर्य सुंदर विजय महाराज, निर्मल सुंदर विजय महाराज एंव साध्वी धैर्य निधीजी महाराज के सानिध्य मे दीक्षा ग्रहण कराई गई। वही जैन श्वेताम्बर सकल श्रीसंघ की ओर से महावदी तीज,शुक्रवार काे गणिपद प्रदान व दीक्षा विधी प्रारंभ प्रातः 6 बजे व पूज्य मुनि निर्माेहसुंदर विजय महाराज द्वारा लिखित''प्रश्न मजेदार- उत्तर शानदार'' किताव का विचाेचन किया गया। और स्वामीवात्सल्य प्रातः11ः30 बजे कार्यक्रम आयाेजन किया गया। सम्पूर्ण दीक्षा कार्यक्रम मे संगीत प्रस्तुति अभिषेक कुमार व विपुल पालीवाले ने दी। कार्यक्रम का संचालन मेहुल भाई चेन्नई वाले और गौरव जैन कालवाडी वाले ने किया
- जैन मुमुक्षु अरिहंत कुमार का परिचय
खेडली निवासी सुश्रावक बालकिशन जैन एंव सुश्राविका कांता जैन बहन के सुपुत्र मुमुक्षु अरिहंत ने पाॅलाेटेक्निक डिप्लाेमा,इलैक्ट्राॅनिकल इंजिनिरिग व बीए की उच्च शिक्षा प्राप्त की है। विगत तीन साल से पूज्य गुरूभगवंताे के साथ रहकर संयम जीवन की तालिम लेकर 26 बर्ष की उम्र मे अरिहंत प्रभू के पथ पर चलने के लिए ललायित बने। उन्हाेने पंचप्रतिक्रमण, चार प्रकरण, तीन भाष्य, संस्कृत की दाेनाे बुक, सुलभ चारित्राणी, गाैतमपृच्छा आदि अध्ययन करके ज्ञान मार्ग मे 1500 से ज्यादा किमी का विहार करके क्रिया मार्ग मे,उपधान तप,बर्धमान तप की 14 ओली व चउविहार छठ करके सात सात्रा करके तप मार्ग मे अच्छी सफलता प्राप्त पाई है। शासन समर्पण शिविर मे माॅस्ट टेलेंट पर्सनलटी अवार्ड प्राप्त किया है। कवित्व शक्ति के साथ- साथ नृत्य,गायन,मंच संचालन व नाट्यमंचन क्षेत्र मे अच्छी महारत उन्हाेने हासिल की है। उन्हाेने परम् पूज्य पंन्यास धैर्यसुंदर विजयजी महाराज के चरणाे मे जीवन समर्पण किया है।