लॉकडाउन बढ़ाना लॉकडाउन के होगा समान - मीणा
जयपुर (राजस्थान) वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते भारत में पिछले वर्ष लगाए गए लॉकडाउन से जन जीवन अस्त व्यस्त होने के साथ रोजगार के रास्ते खत्म हो गए, जिससे मजदूर किसान ,व्यापारी को बड़ी भारी नुकसान का सामना करना पड़ा, जिसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा । लेकिन साथ ही सभी सामाजिक संगठनों, स्वैच्छिक संगठनों, राजनीतिक संगठनों,व्यक्तियों व सरकार द्वारा भोजन , चिकित्सा जैसे प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आगे आकर लोगों का सहारा बने । लॉकडाउन खुलने के बाद लोग इस से उभर नहीं पाए पुन अप्रैल 2021 में विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर से पुन लॉकडाउन लागू कर दिया, जिससे आमजन कोविड-19 की इस दूसरी लहर में जीवित रहना ही विकास समझने लगे हैं। आम आदमी विकास को भूलकर केवल जिंदा रहना ही विकास मानने लग गया है साथ ही बढ़ते लॉकडाउन से लोगों में भय व्याप्त होने के साथ ही 2 वक्त की रोटियों की चिंता सताने प्रारंभ हो गई है, राज्य वह केंद्र सरकारों को इसे लेकर नीतिगत निर्णय लिए जाने चाहिए, जिससे लोगों में व्याप्त भय दूर हो सके। साथ ही लोक डाउन के तहत वे पूर्ण रूप से सुरक्षित रह सकें। यदि राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा लॉकडाउन के अंतर्गत भोजन व चिकित्सा की व्यवस्था के साथ ही बच्चों की शिक्षा के ऊपर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो लॉकडाउन की परिभाषा ही बदल जाएगी और यह लॉक + लोग डाउन (अर्थात लोगों को डाउन करना)से लोग जानने लगेंगे क्योंकि इसके तहत दिहाड़ी मजदूर किसान के साथ ही आमजन का जीवन जीना दुर्लभ होता जा रहा है, महामारी से निपटने के साथ-साथ लोगों की आवश्यकताओं को लॉकडाउन में ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
लेखन:- रामभरोस मीणा