मनरेगा बनी खुल जा सिम-सिम, कार्य कागजात में पूरा धरातल पर नदारद
पंचायती राज के अधिकारी व कर्मचारियों की मेहरबानी से पंचायतों के सरपंच डकार रहे श्रमिकों के नाम पर पैसा
भरतपुर जिले के कामां विधानसभा क्षेत्र की कामां पंचायत समिति की ज्यादातर ग्राम पंचायतों के जाॅब कार्डधारी एवं बेरोजगार परिवारों को केन्द्र सरकार की गारन्टी से रोजगार मुहैया कराने के लिए बनी मनरेगा योजना खुल जा सिम- सिम वाली कहावत चरितार्थ कर रही है,उक्त योजना का लाभ अब पंचायती राज विभाग के जुडे अधिकारी व कर्मचारियों सहित ग्राम पंचायत के सरपचं व ग्राम विकास अधिकारी व ग्राम विकास अधिकारी बने बैठे कनिष्ठ लिपिक उठा रहे है,जिनके मध्य मनरेगा को लेकर सांठगांठ है,जो मनरेगा के कार्य को कागजात में पूरा दर्जा कर सरकारी धन का गलत उपयोग कर स्वयं के जेब भरने में जुटे हुए है,स्वीकृत कार्य की मस्टाॅल में सरपचं,पंच के परिजन एवं समर्थक के नाम इन्द्राज कर सरकारी धन का हडपने लगे है। यदि कोई व्यक्ति मनरेगा के कार्य को देखना चाहे तो उसे कार्य स्थल काम नजर नही आऐगा और मनरेगा के श्रमिक व मेट भी नदारक नजर आऐगें। अब बरसात के मौसम की हो गई,ग्रामीण अंचल की कई पोखर व तालाब पानी से भरे हुए है,जिसकी खुदाई एवं पार की चारदीवारी के नाम पर मनरेगा के कार्य स्वीकृत हो गए,जब पोखर व तालाब में पानी का भराव है,तो वह कैसे खोदी जा सकती है। अनेक पोखरों की खुदाई दर्शा कर मनरेगा की राशि हजम कर दी और चार दीवारी के निर्माण का पैसा भी कागजात में खर्च दिखा दिया गया। ग्रामीण एवं जाॅबकार्डधारी व्यक्ति जब मनरेगा में काम के लिए फार्म सख्यां-6 भरता है,तो उसके दंबग सरपचं व ग्राम विकास अधिकारी फटकार लगा भगा देते है,जिसे मनरेगा के तहत काम पर नही लगाया जाता है,जो बिना कार्य किए दुःखी मन से लौट आते है। कई व्यक्तियों ने राज्य सरकार के द्वारा जारी 181 सेवा पर शिकायत दर्ज कराई,जिसकी जांच भी होती है,लेकिन सरपचं व ग्राम विकास अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही नही होती है। क्योंकी जांच करने वाले भी पंचायती राज के अधिकारी व कर्मचारी होते है। एक ग्रामीण ने बताया कि मनरेगा के कार्य पर दंबग एवं पंचायत के जनप्रतिनिधियों के परिजन एवं समर्थक ही लगाए जाते है,जो काम नही करते केवल मनरेगा के पैसा का आधा-आधा बांट लेते है। यदि कोई व्यक्ति ग्राम पंचायत भवन पर फार्म सख्यां-6 जमा कराने जाता है,तो मनरेगा के मेट व सरपचं-ग्राम विकास अधिकारी के दलाल उससे 100 से 200 रूपए सुविधा शुल्क के रूप में वसूल लेते है,जो पैसा दे देता है,उसे कार्य पर लगा दिया जाता है।वहीं फर्जीवाड़े का खेल यही नहीं रुकता क्योंकि जो लोग वर्षों से अपने मूल निवास से पलायन कर चुके हैं और रोजी रोटी की तलाश में अपने क्षेत्र से बाहर जाकर अन्य प्रदेशों में रोजगार कर रहे हैं के नाम भी मस्ट्रोलों के अंदर चलते हुए दिखाइ दे रहे हैं कामा विधानसभा क्षेत्र की कामां पंचायत समिति में जहां जेटीए हड़ताल पर बताई जा रहे हैं तो फिर मस्टरोल की टास्क की नपाई को कौन लोग नाप रहे है व पानी से भरी हुई तो घरों में कौन से मजदूर खुदाई कर रहे हैं वह कौन से अधिकारी पानी के अंदर जाकर नाप तोल कर रहे हैं लेकिन भ्रष्टाचार की इस बंदरबांट में तू डाल डाल मैं पात पात वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है। जब संदर्भ में विभिन्न पंचायतों में हो रहे घोटालों को लेकर उच्चाधिकारियों से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया जाता है तो जांच कराने की कहकर इतिश्री कर लेते हैं अगर मामला जब मीडिया में आ जाता है तो उस मस्ट्रॉल को निरस्त कर सरपंच की पूर्ति के प्रयास किए जाते हैं अब आमजन सोचने को मजबूर है कि जब पंचायत समिति स्तर पर करोड़ों अरबों रुपए का घोटाला हो रहा है और जिम्मेदार मूकदर्शक बनकर बैठे हैं तो फिर भ्रष्टाचार को मिटाने की जिम्मेदारी कौन निभाएगा आज जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं क्या उन्हीं से कोई न्याय की उम्मीद की जा सकती है। इस बारे में विकास अधिकारी केके जैमन का कहना है कि यदि किसी ग्राम पंचायत के ग्रामीणो द्वारा ग्राम पंचायत में फर्जी मस्टर रोल चलने की जाती है तो मामले की जांच करवा कर मास्टर निरस्त कर दी जाएगी
- रिपोर्ट:- हरीओम मीणा