नानी के घर जाना बना सपना, दूसरी लहर से इस साल की गर्मियों में रहना होगा घर
भरतपुर (राजस्थान/ रामचन्द सैनी) छोटे बच्चों में गर्मियों की छुट्टी आने का साल भर इंतजार रहता है कि कब छुट्टियां आए और नानी के घर जाकर खूब मौज - मस्ती करें। लेकिन पिछले साल घर से बाहर नहीं निकलने से हताश बच्चों की उम्मीदों पर दूसरी लहर ने पानी फेर दिया है। जिससे इस साल की गर्मियों की छुट्टियां भी घर ही मनानी पड़ेंगी। करीब 13 माह से सिर्फ घरों में कैद बचपन मोबाइल एवं टीवी के भरोसे ही काटना पड़ रहा है। जिससे बच्चों की दिनचर्या में भी फर्क आया है। कोरोना महामारी की वजह से करीब एक साल से स्कूल बंद हैं। जिससे छोटे बच्चे 13 माह से घर पर कैद रहकर चिड़-चिडे़ हो गए हैं। 5 से 10 साल के बच्चों पर ज्यादा असर देखने को मिल रहा है। खेलकूद बंद होने से बच्चों की दिनचर्या बदली है। स्कूल न जाने से भी बच्चों पर असर आ रहा है। हालांकि सरकार ने पहली लहर का दौर कम होने के बाद 8 वीं तक के बच्चों के स्कूल खोल दिए थे। लेकिन दूसरी लहर शुरू होने के बाद स्कूलों को वापस बंद करना पड़ गया। बिना पढ़े ही अगली साल में प्रमोट हो रहे बच्चों के सामने अब पढ़ाई की चिंता भी नहीं सता रही है। बच्चे पढ़ाई बंद कर जैसे - तैसे अपना मनोरंजन कर रहें हैं।
कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के बाद बच्चे कब स्कूल जाएंगे ये पता नहीं है। बाहर खेल-कूद, मिलना-जुलना नहीं हो पा रहा है। छुट्टियों में नानी के घर जाना भी बंद है। जिससे बच्चे टीवी, लैपटॉप, मोबाइल की दुनिया में ही जी रहे हैं। छोटे बच्चों पर पढ़ाई का बोझ नहीं होने एवं स्कूल बंद होने से उनकी दैनिक दिनचर्या में भी काफी असर आया है। बच्चों के वजन में भी बढ़ोतरी होने लगी है।
कोरोना काल ने अपने नन्हें हाथों में रूल पेंसिल पकड़ कर स्वर - व्यंजन, एबीसीडी एवं गिनती लिखना सीखे छोटे बच्चों की आदत बिगाड़ दी है। 13 माह से स्कूल बंद होने की वजह से बच्चे सब कुछ भूल चुके हैं। यदि परिजन बच्चों को डरा - धमकाकर पढ़ने भी बिठाएं तो वो स्कूल जाने का दबाव नहीं होने से बहानेबाजी कर पढ़ाई छोड़ अन्य शैतानियों में लग जाते हैं। जिससे परिजन भी बच्चों का बचपन खराब करने वाले कोरोना काल को कोसते दिखाई पड़ते हैं। अभिभावक रजनी अवस्थी, शालिनी शर्मा का कहना है कि स्कूल में जाने के बाद बच्चे घर आकर एक से दो घंटे होमवर्क एवं पढ़ाई करते थे। लेकिन अब दिनभर टीवी, मोबाइल एवं खाने - पीने में गुजर जाता है।
ब्लॉक सीएमएचओ डाॅ.बी.एल.मीणाका कहना है कि कोरोना काल में लंबे समय से स्कूल नहीं जा पाए बच्चों में मानसिक एवं शारीरिक बदलाव आना स्वभाविक है। बाहर आने - जाने पर पाबंदी होने की वजह से घर में कैद छोटे बच्चों के साथ अभिभावक वक्त बिताकर टीवी, मोबाइल से होने वाले नुकसान की जानकारी देकर उन्हें खेलों के लिए प्रेरित करें। हो सके तो बच्चों के साथ खुद भी पढ़े एवं खेलें, जिससे बच्चों का ध्यान अन्य संसाधनों के बजाए पढ़ने एवं खेलने की ओर अग्रसर हो सके।
एसडीएम मुनिदेव यादव का कहना है कि कोरोना की पहली लहर खत्म होने के कुछ माह बाद ही दूसरी लहर शुरू होने के बाद छोटे बच्चों को घर से बाहर निकलने एवं स्कूल जाने का अवसर ही नहीं मिल पाया। जिससे बच्चों के व्यवहार एवं खान-पान में बदलाव आए हैं। वर्तमान में शहरों के साथ गांवों में भी बढ़ रहे संक्रमण की खबरों को लेकर लोग तनाव युक्त जीवन जी रहे हैं। जिसका असर भी बच्चों में पड़ सकता है। अभिभावकों को चाहिए कि स्वयं तनाव मुक्त रहकर बच्चों के सामने सकारात्मक बातें करें। उन्हें जल्द ही महामारी से जंग जीतने के बाद पहले की तरह स्कूल खुलने, घर से बाहर खेलने - कूदने एवं मौज मस्ती वाले दिन शुरू होने की उम्मीद जगाए। जिससे बच्चों के साथ-साथ पूरा परिवार भी नकारात्मक सोच से बाहर निकलकर महामारी से स्वयं को सुरक्षित रखने में सफल हो सकेगा।