वल्लभनगर विधानसभा सीट उपचुनाव में प्रीति से बंधी जनता की प्रीत, लेकिन वोट बैंक में इजाफा नहीं
वल्लभनगर भाजपा की रार में जीत का सहारा बंधा शक्तावत के सर, उपचुनाव में प्रीति शक्तावत को जिताने में सहानुभूति की लहर काम आयी
वल्लभनगर (उदयपुर,राजस्थान/ मुकेश मेनारिया) प्रदेश ही नहीं केंद्र की निगाहें टिकाने वाली वल्लभनगर विधानसभा सीट उपचुनाव को लेकर प्रदेश एवं केंद्र के नेताओं के भविष्य का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाएगी। एक ओर वल्लभनगर विधानसभा में प्रदेश की गहलोत सरकार एवं सरकारी मशीनरी का भरपूर प्रयोग करते हुए जीत का सेहरा कांग्रेस के पक्ष में तो बांध लिया लेकिन इस उपचुनाव में कई बड़े सवालिया निशान खड़े कर देते हैं।
कांग्रेस ---- दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत 20 जनवरी 2021 में निधन के बाद कई चेहरे उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सामने आए जिसमें मुख्यतः गजेंद्र सिंह शक्तावत की करीबी कुबेर सिंह चावड़ा, दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत के बड़े भाई देवेंद्र सिंह शक्तावत राज सिंह जाला 16 पंचायतों में अपना दबदबा रखने वाले भीम सिंह चुंडावत, ओंकारलाल मेनारिया प्रमुख थे। प्रदेश के राजनीतिक जादूगर कहे जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत एवं केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा विश्वास जताते हुए दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की धर्मपत्नी प्रीती कुंवर शक्तावत पर वल्लभनगर से कांग्रेस पार्टी से दाव पेच अपनाए गए। वही वोट बैंक को बढ़ाने एवं प्रभारी मंत्री के रूप में परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास वल्लभनगर में पिछले 4 महीनों से पड़ाव डाल कर सीट निकालने के लिए हर प्रकार की जद्दोजहद की एवं काफी हद तक सफल भी हुए।
प्रदेश के प्रधान सेवक अशोक गहलोत ने तमाम कयासों पर रोक लगाकर पार्टी के प्रमुख दावेदारों को समझा कर संघठन मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वही धरियावद एवं वल्लभनगर उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों को जीत अगर एक बार फिर कांग्रेस के केंद्रीय संगठन की नजरों में राजनीतिक जादूगर के रूप में उभरे हैं।
- चुंडावत का 16 पंचायतों का मैनेजमेंट रहा जीत का प्रमुख कारण-
पार्टी के प्रमुख दावेदारों में से एक भीम सिंह चुंडावत 16 पंचायतों में खासा प्रभाव रखने वाले व्यक्तित्व है। यह बात गौर करने लायक है कि जो मुख्यमंत्री गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन पर सांत्वना व्यक्त करने के लिए नहीं आए वही इस उपचुनाव में 15 दिन में 2 सभाएं वल्लभनगर विधानसभा क्षेत्र में की। पहली सभा वल्लभनगर स्थानीय कृषि मंडी क्षेत्र में की। वही कुराबड क्षेत्र से पार्टी कमजोर लगने की स्थिति में चुंडावत द्वारा मैनेजमेंट बिठाते हुए चुनाव से ठीक 5 दिन पूर्व 25 अक्टुबर को कुराबड क्षेत्र में बेहतर मैनेजमेंट के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सभा ने कांग्रेस की जीत में चार चांद लगा दिए। राजनीतिक पंडितों का यह मानना है की कांग्रेस की जीत का मुख्य कारणों में भी एक यही है ।
- कांग्रेस के वोट बैंक में नहीं आया कोई खास इजाफा -
2018 में कांग्रेस के दावेदार रहे विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत तत्कालीन चुनाव में 66304 मत मिले
वहीं 2021 में उपचुनाव में प्रीति गजेंद्र सिंह शक्तावत 65713 वोट मिले ।
अगर दोनों चुनाव में वोटो की गणित को समझा जाए तो कांग्रेस ने कोई खास बढ़त हासिल नहीं की है अगर जीत का कारण ढूंढा जाए तो कहीं ना कहीं विपक्षी फूट ही देखी जाएगी। प्रदेश में कांग्रेस सरकार होने के बावजूद सरकारी मशीनरी इसका भरपूर उपयोग करने प्रदेश के तमाम मंत्रियों विधायकों एवं स्टार प्रचारकों के होने के बाद भी 2018 में कांग्रेस द्वारा जनमत के बराबर कांग्रेस पार्टी नहीं जुटा पाई।
- भाजपा वल्लभनगर की राजनीतिक दल दल में 41 वर्षों से एक बार ही खिल पाया कमल-
वल्लभनगर विधानसभा सीट को लेकर अगर भाजपा का बारीकी से अध्ययन करें तो कहीं ना कहीं 1980 में बीजेपी अस्तित्व में आने के बाद वल्लभनगर विधानसभा के राजनीतिक दल दल में एक बार कमल खिल पाया। सन 1980 में बीजेपी अस्तित्व में आए तब राव कमलेंद्र सिंह को पार्टी ने लिया ही नहीं। इनके समर्थक बीजेपी में शामिल हुए। वही भिंडर के पुष्पराज मेहता बीजेपी के सक्रिय पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में उभरे।
लेकिन भाजपा में राजनीतिक उठापटक एवं टांग खिंचाई का खेल 41 वर्षों से चलता आ रहा है ।
सन 1985 एवम् 1990 में हुए चुनाव में भाजपा ने वल्लभनगर में उम्मीदवार उतारा ही नहीं। सन 1993 में हुए भाजपा के चुनाव में पुष्पराज मेहता को टिकिट मिलने की पूर्णता संभावना जताई जा रही थी। राजनीतिक विशेषज्ञों ने बताया कि 1993में ऐन वक्त पर तत्कालीन भैरों सिंह शेखावत के करीबी रहे रणधीर सिंह भिंडर को टिकट देकर भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवार के रूप में घोषित किया।
तत्कालीन कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे गुलाब सिंह शक्तावत के सामने सन 1993 एवं 1998 के चुनाव में भी भाजपा के उम्मीदवार रहे रणधीर सिंह भींडर को हार का सामना करना पड़ा। भारतीय जनता पार्टी द्वारा तीसरी बार रणधीर सिंह भिंडर पर 2003 में विश्वास जताते हुए पार्टी का प्रत्याशी बनाया। तत्कालीन प्रदेश में भाजपा की लहर एवं वसुंधरा राजे के प्रभाव के चलते 2003 में वल्लभनगर विधानसभा में पहली बार राजनीतिक दल दल के बीच ऐतिहासिक मतो के साथ भारतीय जनता पार्टी विजय हुई । वही जीत का सरताज रणधीर सिंह भिंडर के सर बंधा। विधानसभा में 2003 से 2008 तक वसुंधरा एव भिंडर की करीबिया बड़ी। इसी बीच तत्कालीन गृहमंत्री गुलाब सिंह शक्तावत के निधन के बाद उनके छोटे पुत्र गजेंद्र सिंह शक्तावत पर कांग्रेस पार्टी ने विश्वास जताया एवं 2008 में कांग्रेस की ओर से गजेंद्र सिंह शक्तावत प्रत्याशी के रूप में मैदान में आए। राजनैतिक विरासत एवं मेवाड़ क्षेत्र में कांग्रेस में अच्छा प्रभाव रखने वाले स्व. गुलाब सिंह शक्तावत के पुत्र गजेंद्र सिंह शक्तावत ने भाजपा के रणधीर सिंह भींडर को हराया। 2008 से 2013 तक विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत सत्ता में रहे। इसी बीच में भिंडर का जयपुर में पड़ाव भी रहा और वसुंधरा भिंडर की करीबियों और बड़ी। माना जा रहा था कि 2013 में भी भिंडर भाजपा से दावेदारी के लिए प्रबल प्रत्याशी के रूप में सामने आएंगे। लेकिन मेवाड़ के भाजपा की राजनीति में उठापटक वर्षों से चली आ रही है वहीं वर्चस्व की लड़ाई में मेवाड़ के भाजपा के कद्दावर गुलाबचंद कटारिया द्वारा ऐन मौके पर कांग्रेस के कार्यकर्ता गणपत लाल मेनारिया को भाजपा का टिकट देकर प्रत्याशी के रूप में 2013 में उतारा। जिनकी भाजपा से बागी हुए रणधीर सिंह भिंडर ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 2013 का विधानसभा चुनाव जीतकर प्रचंड मोदी लहर में भी भाजपा की जमानत जप्त करवा दी। वही एक बार फिर उपचुनाव में भाजपा के अंतह खानो में खींच तान की वजह से उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी हिम्मत सिंह जाला की जमानत जप्त हो गई। वही कार्यकर्ताओं में आपसी उपजे विवादों से सामने आ रहा है कि पार्टी के ही कार्यकर्ताओं द्वारा भी उक्त उपचुनाव में भाजपा से बागी हुए रालोपा प्रत्याशी उदय लाल डांगी के समर्थन में भितरघात के कयास लगाया जा रहे है। 8 साल में दूसरी बार जमानत जप्त हुई भाजपा की 2013 मैं पार्टी प्रत्याशी गणपत लाल मेनारिया की करारी हार के बाद जमानत जप्त हुई। वहीं भाजपा की उपचुनाव 2021 में भी एक बार फिर भाजपा कि टिकट वितरण में फेरबदल के कारण एक बार फिर जमानत जप्त हुई।
- रालोपा का मेवाड़ में उदय के नेतृत्व में हुआ आगाज -
भाजपा से 2018 में दावेदार रहे किसान पुत्र उदय लाल डांगी ने पार्टी की कमान संभाली । 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में उदय लाल डांगी ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए। वोट प्राप्त किए ।
लेकिन 2021 के वर्तमान हुए उपचुनाव में टिकट के हेर फेर में विधानसभा प्रभारी उदय लाल डांगी का टिकट काटकर समाज सेवी हिम्मत सिंह झाला पर पार्टी ने विश्वास जताते हुए प्रत्याशी बनाया। जिससे पार्टी से बागी हुए हैं उदय लाल डांगी ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का दामन थाम लिया। वल्लभनगर में उपचुनाव में पहले से हो रहे त्रिकोणीय मुकाबले के साथ में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में चतुष्कोण मुकाबला हो गया। उक्त उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी में अभी अच्छा खासा वोट बैंक खबर करते हुए जीत से दूसरे पायदान पर रहकर प्रदेश एव केंद्र की कि राजनीति में हलचल पैदा कर दी|
वहीं उक्त उपचुनाव को लेकर हनुमान बेनीवाल ने भी बयान जारी करते कहा कि वल्लभनगर उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के पक्ष में मतदान व समर्थन करने वाले तमाम नागरिकों का आभार व्यक्त किया ।रालोपा प्रत्याशी उदयलाल डांगी को 44978 मत के साथ जो ऐतिहासिक जनसमर्थन देकर वल्लभनगर जैसी हॉट सीट पर दूसरा स्थान प्राप्त करना पार्टी के लिए गर्व की बात है! राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी द्वारा लगातार जनहित के मुद्दों पर संघर्ष करेगी !
वल्लभनगर में हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी हिम्मत सिंह झाला पर टिकट की अंतिम मोहर में संसदीय क्षेत्र के सांसद चंद्र प्रकाश जोशी की महती भूमिका रही है। वहीं टिकट को लेकर के शुरुआती दौर में ही पार्टी के पदाधिकारियों ने सवालिया निशान खड़े कर दिए थे । ऐसे में उक्त प्रत्याशी को जिताना प्रदेश एवम देश के संगठन एवं मेवाड़ के बड़े नेताओं में शुमार राजस्थान सरकार के प्रतिपक्ष नेता गुलाब चंद कटारिया एवं संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं चित्तौड़गढ़ सांसद चंद्र प्रकाश जोशी का राजनीतिक वर्चस्व दांव पर लग गया था। वहीं उक्त वल्लभनगर उपचुनाव में भाजपा के पक्ष में सम्मानजनक मत न आना एव जमानत जप्त हो जाना कहीं ना कहीं केंद्र तक उक्त नेताओं के प्रति एव वल्लभनगर में संगठन की कमजोरी का संदेश पहुंचाता है।
जनता सेना: रणधीर खुद के रण में दिखे कमजोर ----
राजनीति के शह और मात के खेल में जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भिंडर खुद की विधानसभा क्षेत्र में भी इस उपचुनाव में कमजोर देखे गए। वहीं तीसरे पायदान पर रहना पड़ा । राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस उपचुनाव में जनता सेना का एक बड़ा वोट बैंक दो धड़ों में टूट गया जिसमें एक राजपूत धड़ा भाजपा से क्षत्रिय प्रत्याशी हिम्मत सिंह झाला के पक्ष में मतदान हुआ । वहीं जातीय समीकरण के आधार पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी जनता सेना का एक बड़ा हिस्सा अपने पक्ष में करने में कामयाब रही। इस उपचुनाव में भाजपा से क्षत्रिय चेहरे पर दांव खेलना एवं राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का मेवाड़ में उपचुनाव में अचानक पैर पसारना दोनों घटनाओं के पीछे राजनीतिक षड्यंत्र का बड़ा हिस्सा बताया जा रहा है ।लेकिन कहीं ना कहीं इन दो मुख्य कारणों की वजह से भी जनता सेना राजस्थान सुप्रीमो रणधीर सिंह भिंडर को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।
मेवाड़ की भाजपा से नदारद रही वसुंधरा - प्रदेश की भाजपा की राजनीति में राजनीतिक गुट बाजियों के चलते उपचुनाव में स्टार प्रचारकों में शुमार वसुंधरा राजे मेवाड़ की राजनीति से दरकिनार किया गया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मेवाड़ में हुए दो उपचुनावों में धरियावद एवम् वल्लभनगर सीट पर वसुंधरा खेमे के समर्थको को टिकिट नहीं मिलने से नाराजगी देखी जा रही है।
वही अपने खेमे के पार्टी पदाधिकारियों एवं विधायकों द्वारा भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से पार्टी के खिलाफ काम कर मेवाड़ से भाजपा को कमजोर करने के मकसद से एवम् भाजपा प्रत्याशियों को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। प्रदेश की बड़े नेताओं में हुई वर्चस्व कि लड़ाई में विधानसभा के कई कार्यकर्ताओं एव पार्टी प्रत्याशियों के राजनीतिक भविष्य की हत्या पिछले एक दशक से होती नजर आ रही है । हालाकि भाजपा डैमेज कंट्रोल हेतु सभी कयासों पर विराम लगाते हुए , प्रदेश के भाजपा नेताओं द्वारा वल्लभनगर में प्रेस वार्ता के दौरान कोई आपसी गुटबाजी नहीं होने एवम् भाजपा में एकता के गुणगान करते देखी गई।
- प्रीति के लिए है परीक्षा की घड़ी----- वल्लभनगर उपचुनाव में कांग्रेस बड़े जनमत के साथ में जीत हासिल करने वाली दिवंगत विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत की धर्मपत्नी एवं वल्लभनगर विधायक प्रीति सिंह शक्तावत के लिए 2023 तक परीक्षा की घड़ी है। प्रदेश नेतृत्व ने विधायक प्रीति सिंह शक्तावत को सरकार की तरफ से क्षेत्र के विकास में भरपूर सहयोग मिलने की उम्मीद है । वही 2023 तक वल्लभनगर की जनता के मानस पटल पर कितना खरा उतर पाती है यह भविष्य के गर्भ काल में छिपा है।