संग्रह के स्थान पर जरूरत के अनुसार वस्तु लेना ही उत्तम अकिंचन धर्म है
डीग / भरतपुर / पदम जैन
ड़ीग -18 सितंबर उत्तम अकिंचन व्यक्ति के खाली होने का धर्म है। अर्थात जो हम इस संसार में इकट्ठा कर रहे हैं उसे छोड़ना ही उत्तम अकिंचन धर्म है। यह यात्रा हमें निजस्वरूप और मुक्तिधाम तक ले जाती है। यह बात शनिवार को
दशलक्षण महापर्व के दौरान उत्तम अकिंचन पर्व के अवसर पर ऋषभ जैन शास्त्री ने प्रवचन करते हुए श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर पुरानी डीग में कहीं।
उन्होंने कहा कि तराजू के जिस पलडे पर ज्यादा वजन होता है वह नीचे की ओर अर्थात अधोगति की तरफ जाता है। यदि हमारी प्रवर्ती संग्रह की तरफ रहेगी तो हम कामनाओं के बोझ के कारण दब कर नीचे की ओर जाएंगे। इसलिए हमें किसी वस्तु को उतना ही अपने पास रखना चाहिए जितने की हमें जरूरत है। उसका व्यर्थ नहीं संग्रह नहीं करना चाहिए यही उत्तम अकिंचन धर्म है । इस अवसर पर प्रातः विधान शांति धारा और विशेष पूजा का आयोजन किया गया जिससे बड़ी संख्या में जैन धर्मावलंबियों ने भाग लिया।