देश का सबसे बडा सार्वजनिक बैंक उडा रहा है राजभाषा अधिनियम का मजाक
भीलवाड़ा (राजस्थान/ राजकुमार गोयल) एक ओर जहाँ समस्त विश्व समुदाय अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहा है, वहीं हमारे भारत देश का सबसे बडा सार्वजनिक बैंक राजभाषा अधिनियम की धज्जियां उड़ाने मे कोई कसर बाकी नही रख रहा ।
जी हाँ, भारतीय स्टेट बैंक की सुभाष नगर भीलवाडा (राजस्थान) शाखा द्वारा नगद राशि अथवा चेक जमा करवाने के लिए उपलब्ध करवाई जा रही जमा पर्ची अंग्रेजी भाषा मे मुद्रित होने के कारण इन दिनो अत्यधिक चर्चा का विषय बनी हुई है जिसके कारण एक ओर जहाँ बैंक द्वारा राजभाषा अधिनियम 1963 की स्पष्टतया अवमानना की जा रही है वहीं बैंक के अधिकाॅश ग्राहक हिन्दी भाषी होने तथा भाषायी अज्ञानता के कारण जमा पर्ची का उपयोग करने मे उन्है बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड रहा है । सरकार द्वारा प्रत्येक ग्रामीण का खाता खुलवाकर जन धन योजना सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभ आमजन तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे है लेकिन सवाल यह है कि जब तक ग्राहको को उसकी भाषा मे बैंकिंग सेवाएं नही मिलेगी तो वो किस प्रकार बैंक से जुडकर उन सभी सरकारी योजनाओं लाभ प्राप्त कर पाएगा? और जब ग्रामीण महिलाए इन सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए ऐसे वित्तीय संस्थानो पर पहुॅचती है तो कम पढे लिखे होने तथा अंग्रेजी भाषा की अज्ञानता के कारण मजबूरन उन्है अन्य लोगो की सहायता लेने को विवश होकर जाने अनजाने ठगी का शिकार बनना पडता है ।
बैंक शाखा के एक ग्राहक का कहना है कि दस दिन पहले ही इस बारे मे शाखा प्रबंधक को लिखित मे शिकायत दर्ज करवाई थी लेकिन शाखा प्रबंधक ने किसी भी प्रकार की कोई सहायता नही की ।
और आज जब शाखा प्रबंधक से राजभाषा अधिनियम की अवमानना के विषय मे बात की गई तो उनका कहना है कि मुझे अभी तक इस विषय मे कोई शिकायत मिली ही नही है इसलिए मैने अब तक कोई कार्यवाही नही की ।
बैंक के उच्च अधिकारी एजीएम तथा डीजीएम से इस विषय से संबंधित जवाबदेही के विषय मे जानकारी लेनी चाही तो सभी ने अपना पल्ला झाडते हुए इस विषय पर किसी भी प्रकार का कोई संतोषप्रद जवाब नही दिया ।
बहरहाल अंग्रेजी भाषा नही जानने वाले शहरी अथवा ग्रामीणो का अंग्रेजी भाषा के दम पर आर्थिक एवं मानसिक शोषण किया जाना अत्यंत चिंता का विषय तो है ही साथ ही राजभाषा अधिनियम की खुलेआम अवहेलना किए जाने से आमजन के हित और अधिकारो पर कुठाराघात सा प्रतीत हो रहा है ।