सलेमपुर कलां का आस्था केन्द्र गंगा मन्दिर, भरतपुर के महाराजा बलवन्तसिंह ने भिजवाई थी प्रमिता
गांव के लोगों ने देश की आजादी के बाद कराया निर्माण
भुसावर (भरतपुर, राजस्थान/ रामचन्द सैनी) भरतपुर, करौली एवं दौसा जिले के सीमावर्ती भुसावर उपखण्ड के गांव सलेमपुर कलां में बना गंगा माता का मन्दिर आस्था का केन्द्र है और धर्म निरपेक्षता एवं भाई-चारा का प्रतीक है। साल 1845 में भरतपुर रियासत के महाराजा बलवन्तसिंह ने भरतपुर रियासत के संस्थापक महाराजा सूरजमल की ससुराल तथा ननिहाल पक्ष को अमूल्य पत्थर से बनी गंगा माता की प्रतिमा उपलब्ध कराई,जिसके बाद भरतपुर महाराजा ब्रजेन्द्रसिंह व महाराजा विश्वेन्द्रसिंह के शासन में मन्दिर का निर्माण गांव के लोगों ने मिल कर कराया,जहां आए दिन धार्मिक कार्यक्रम होते है,साल में एक बार मेला भी लगता है। खास बात ये है कि महाराजा बलवन्तसिंह सन्त व विद्वान पण्डितों के कहने पर गंगा स्नान को गए,जहां उन्होने ने स्वयं की रियासत में गंगा माता का मन्दिर निर्माण का संकल्प लिया,संकल्प को पूरा करने को अमूल्य पत्थर से तीन प्रतिमाएं तैयार कराई,उक्त प्रतिमाओं को तैयार करने में 108 दिन लगे,जब कारीगर प्रतिमाएं तैयार कर रहे थे,बनारस,हरिद्वार,इलाहाबाद, सोरोजी,अयोध्या आदि धार्मिक तीर्थ क्षेत्र के सन्त एवं विद्वान पण्डित ने कारीगरों के पास ही नित्य वेदमन्त्र एवं गंगा माता का जाप किया। गांव के शिक्षाविद्व व इतिहासकार ज्ञानसिंह के अनुसार जो प्रतिमाएं भरतपुर,बयाना एवं सलेमपुर कलां पहंुची,जहां भरतपुर में भरतपुर में गंगा मन्दिर की नीवं महाराजा बलवन्तसिंह ने रखी,जिसके बाद पाचं महाराजाओं के शासनकाल तक चला और महाराजा ब्रजेन्द्रसिंह के शासनकाल में पूरा हुआ। बताया जाता है कि भरतपुर के गंगा माता मन्दिर निर्माण में 90 साल लगे,वही गांव सलेमपुर कलां में प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा भी महाराजा बलवन्तसिंह के द्वारा हुई,जिसके बाद महाराजा ब्रजेन्द्रसिंह ने मन्दिर के जीर्णोद्वार की नींव रखी और महाराजा विश्वेन्द्रसिंह की अनुमति पर गांव के लोगों ने देश की आजादी के बाद मन्दिर का नया भवन बनवाया,जो आज भी जारी है। खास बात यह है कि मन्दिर के अन्दर मगरमच्छ पर सवार मां गंगा की प्रमिता है।
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-प्रसाद में मिलता है गंगाजल
गांव के ज्ञानसिंह एवं उदयसिंह ने बताया कि मां गंगा की प्रतिमाएं भरतपुर के महाराजा बलवन्तसिंह ने साल 1845 में उपलब्ध कराई,जिन्हे गांव से अधिक लगाव था,जो कई बार गांव भी आए,गांव में महारजा बलवन्तसिंह के बाबा तथा भरतपुर रियासत के संस्थापक महाराजा सूरजमल की ससुराल थी,गांव के रतीराम नाहर की पुत्री हंसिया का विवाह महाराजा सूरजमल के साथ हुआ,रतीराम चाहर जयपुर के महाराजा जयसिंह के मालगुजार थे। साल 1845 से आज तक मन्दिर पर दर्शन करने वाला व्यक्ति को प्रसादी में गंगाजल मिलता है।
गांव के बुर्जग ज्ञानसिंह एवं पडौसी गांव बल्लभगढ निवासी ईश्वरसिंह ने बताया कि गांव सलेमपुर कलां-बल्लभगढ क्षेत्र सहित आसपास के कई दर्जन गांवों सहित करौली-दौसा जिले के भारी सख्यां में सर्व समाज के लोग भरतपुर राज घराना के लगाव रखते है और महाराजा सूरजमल और उनके बाद आज तक रहे महाराजा विश्वेन्द्रसिंह व महारानी दिव्यासिंह व उनके पुत्र आदि का सम्मान करते है,ये कई बार गांव में आए,तो प्राचीन काल की भांति सम्मान किया गया,साल 1979 में एक बार महाराजा ब्रजेन्द्रसिंह एवं उनके पुत्र महाराजा विश्वेन्द्रसिंह आए,जिनका हाथी,घोडा,पालकी पर सवार कर स्वागत किया,स्वागत में 30 गांव से अधिक गांव के भारी सख्यां में लोग शामिल हुए,जिसमें महिला व युवाओं की सख्यां अधिक रही