दिव्यांग सेवा के प्रति बढ़ रहा युवाओं का जज्बा
बहरोड (अलवर, राजस्थान/ योगेश शर्मा) हाल ही माननीय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जी द्वारा उच्च शिक्षा में अध्ययनरत छात्र छत्राओं के लिए राजस्थान आनंदम योजना चलाई गई है, जिसका अंतर्गत कॉलेज में पढ़ रहे बच्चों को कम्युनिटी सेवा में आगे आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। वहीं बच्चों में भी कम्युनिटी एवं सोशल वर्क के लिए काफी उत्साह नजर आ रहा है। इसी क्रम में जर्नलिज्म की छात्रा रक्षिता अग्रवाल ने मंथन फाउंडेशन के कार्यालय में विजिट किया एवं संस्था द्वारा दिव्यांग बच्चों की शिक्षा एवं पुनर्वास के लिए किए जाने वाले प्रयासों को बारीकी से सीखा एवं समझा। विजिट के दौरान उन्होंने बच्चों एवं उनके माता पिता से भी संपर्क किया जिससे उन्हें पता लगा कि गांवों एवं छोटे शहरों में सुविधाओं एवं जागरूकता के आभाव में दिव्यांग बच्चों को वे सभी सुविधाएं नहीं मिल पाती जिनकी उन्हें आवश्यकता होती है साथ ही समाज द्वारा शारिरिक एवं मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को उपेक्षित भी किया जाता है। सुविधाओं के अभाव के साथ साथ पुनर्वास सुविधाओं की महँगी फीस के कारण भी बच्चे थेरेपीज से वंचित रह जाते हैं पर मंथन दिव्यांग बच्चों एवं उनके माता पिता के लिए उम्मीद की किरण है जहां बच्चों को न केवल निःशुल्क शिक्षा दी जाती है बल्कि निःशुल्क थेरेपीज, व्यावसायिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है ताकि ये बच्चे आत्मनिर्भर बन सकें।
साथ ही उन्होंने दिव्यांगता के प्रकार, कारणों, एवं इससे बचने के उपायों के बारे में डॉ0 सविता गोस्वामी से भी चर्चा की। डॉ0 गोस्वामी ने बताया कि मानसिक एवं शारीरिक दिव्यांगता के कई प्रकार है जिसमें मानसिक मंदता, डाउन सिंड्रोम, सेरेब्रल पाल्सी, श्रवण बाधिता, दृष्टि बाधिता, आटिज्म आदि मुख्य हैं। दिव्यांगता के अनेक कारण हैं न्यूट्रिशन की कमी, असुरक्षित डिलीवरी, जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी, गर्भावस्था में या बच्चे को मस्तिष्क पर चोट, माता पिता का नशीली वस्तुओं का सेवन आदि कुछ प्रमुख कारण हैं जिनका ध्यान रखकर हम दिव्यांगता को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।
साथ ही उन्होंने बताया कि समाज द्वारा दिव्यांग बच्चों को उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए वे भी दिव्यांग होने से पहले बच्चे हैं जिन्हें खेलने, पढ़ाई करने, समाज में रहने एवं रोजगार का सामान अधिकार है। समय चलते दिव्यांगता का पता लगा लिया जाए एवं उपचार शुरु किया जाए तो दिव्यांगता पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
वहीं डॉ0 पीयूष गोस्वामी जो कि पेशे से फिजियोथेरेपिस्ट हैं ने बताया कि उनके पास पहले कुछ दिव्यांग बच्चे थेरेपी के लिए आते थे। फिजियोथेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, स्पीच थेरेपी एवं होम्योपैथी उपचार से उनमें अच्छा सुधार होने लगा एवं उनके माता पिता से बात करने पर पता चला कि किस तरह वे समाज द्वारा उपेक्षित हैं एवं शिक्षा से भी दूर हैं और अपने ही घर में कैदी की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। इसी प्रेरणा से उन्होंने बच्चों के लिये स्पेशल स्कूल की शुरुआत की जहाँ क्षेत्र के दिव्यांग बच्चों को शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं थेरेपीज निःशुल्क प्रदान की जाती है। इस कार्य में उन्हें फाउंडेशन के अन्य सदस्यों एवं दानदाताओं का सहयोग भी बराबर मिलता रहता है।
जर्नलिस्म छात्रा रक्षिता ने संस्था की सम्पूर्ण कार्यप्रणाली को बारीकी से जाना साथ ही उनके द्वारा बच्चों को स्टेशनरी किट भी उपलब्ध कराई गई।