श्रीमद् भगवद् गीता का भावानुवाद ईश्वर कृपा से ही हो पाया - उमेश उत्साही
भीलवाड़ा (राजस्थान) मनुष्य तो सभी हैं पर उनमें विवेक का होना बहुत आवश्यक है। कवि ब्रह्मा का ही स्वरूप है जो व्यक्ति की चेतना को जागृत करते हुए उसे सही दशा और दिशा दिखाता है। यह विचार राष्ट्रीय कवि उमेश उत्साही ने युगीन साहित्य प्रवाह संस्था के युग दर्शन चैनल पर प्रसारित होने वाले ऑनलाइन साक्षात्कार कार्यक्रम युगीन संवाद में रखे। वार्त्ताकार हास्य, व्यंग्य और ओज के कवि दीपक पारीक के प्रश्नों के जवाब देते हुए कहा कि साहित्य और समाज एक दूसरे के पूरक हैं। दर्शकों के आग्रह पर चेतक के बलिदान पर लिखी हुई कविता 'हल्दीघाटी की माटी तो चंदन है कुछ और नहीं" का वाचन किया। जिसे सुनकर सबके रोंगटे खड़े हो गए।
कार्यक्रम के तकनीकी संयोजक योगेश दाधीच योगसा ने बताया कि श्रीमद भगवत गीता का भावानुवाद करने की प्रेरणा और भूमिका के बारे में बताया। आध्यात्मिक, दार्शनिक और धार्मिक जिज्ञासुओं के प्रश्नों का शमन करते हुए कवि उत्साही ने सांख्य योग, कर्मयोग आदि पर काव्यमय छंद में प्रस्तुति करते हुए सबको विराट रूप के प्रत्यक्ष दर्शन करवा दिये। श्री गीता को परिभाषित करते हुए कहा कि यह संसार का सबसे श्रेष्ठ महाकाव्य है जो साहित्य व काव्य का महासंगम है। यह समाज को संस्कारित करते हुए समग्र ज्ञान को समेटे हुए है। स्वयं कृष्ण ने नारायण रूप में नर रूपी अर्जुन को पहले श्रोता के रूप में अपनी कविता सुनाई थी। जिसने उसके विषाद को दूर करते हुए कर्म पथ पर अग्रसर किया। व्याख्याता रामावतार शर्मा के आग्रह पर भगवान के सौम्य स्वरूप पर चौपाइयां प्रस्तुत की और शिक्षकों से आह्वान किया कि वे शिष्य को अपना ज्ञान देने से पहले बोलने का अवसर प्रदान करें ताकि शिष्य का विषाद दूर हो सके। अजीत सिंह कोटडी जयदेव ने प्रकाश पाराशर अमरगढ़ सहित सभी का धन्यवाद एवं आभार ज्ञापित किया।
- रिपोर्ट- राजकुमार गोयल