कर्म के दो बीज है राग और द्वेष:- मुनि अतुल कुमार
भीलवाड़ा (राजस्थान/ बृजेश शर्मा) महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि रविन्द्र कुमार एवं मुनि श्री अतुल कुमार काशीपुरी में प्रवास कर रहे है।
रात्रि कालीन प्रवचन श्रृंखला में धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री ने कहा कर्म के दो बीज हैं राग और द्वेष यह दोनों तत्व मन को स्वभाव से विभाग की ओर ले जाने वाले है। राग के कारण अपनों में कमिया नजर नहीं आती और द्वेष के कारण दूसरों में विशेषताएं नजर नहीं आती। भगवान महावीर स्वामी ने अनेकांत तत्व का प्रतिपादन किया है एक वस्तु या इंसान में अलग-अलग दृष्टिकोण से विशेषताएं देखना । एकांगी दृष्टिकोण वाले इंसान हमेशा दूसरों नेगेटिव पॉइंट ही ढूंढते हैं। एक दूसरे में विवाद करवा देते हैं ।
मुनिश्री ने यह भी बताया कि कि जिस प्रकार मंथरा ने कैकई का घर बर्बाद कर दिया था, भाइयों का प्रेम तुड़वाने का प्रयास किया था, ऐसे ही कई इंसान दूसरों के सुख समृद्धि और प्रेम को बर्दाश्त नहीं कर पाते और उनके प्रेम और सुख को दबाने का प्रयास करने लग जाते है । लोगों के बीच पुल बनने का काम करना चाहिए ना की दीवार बनने का आज भी मंथरा की आत्मा गांव - गांव, नगर - नगर, डगर, डगर घूम रही है । पुरुष और स्त्रियों के रूप में कइ मंथराऐं गली-गली में मिल जाएंगी, जिनका काम दूसरे के काम में रोड़े अटकाना दो दिलों को तुडवाना होता है । जब भगवान राम वनवास जाने लगे तब उन्होंने कौशल्या मां के पांव छुए और साथ में केकई के पांव भी छूने लगे तब लक्ष्मण और भरत ने कहा भाई जिन्होंने आपके लिए वनवास मांगा आप उनको सम्मान दे रहे है तब भगवान राम ने कहा भरत, लक्ष्मण यह सब विधि का विधान है सब कर्मों के अधीन है इसमें मां केकई का कोई दोष नहीं यह होती है महापुरुषों की क्वालिटी *मुनि श्री* ने कहा कोई कोई पुण्य आत्मा जब जब घर में समाज में देश में आती है तब तब टूटे हुए दिल भी मिल जाते हैं घर एवं समाज को उत्थान की दिशा में ले जाते है, परिवार में खुशहाली आ जाती है । इसलिए हमें पुल बनने का काम करना है ना की दीवार बनने का ।
प्रवचन के दौरान अमित महता, अशोक बुरड़, प्रकाश कावड़िया, माणक चोरडिया, सागर बापना, अमर चंद रांका, लक्ष्मी लाल सिरोहिया, निर्मल सुतरिया, राजेन्द्र पोरवाल, अमित रांका, दीपक डांगी, लाला राम, सुधा पोरवाल, सलोनी पोरवाल, महक पोरवाल आदि उपस्थित थे ।