रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून - सैनी
कवि रहीम का यह कथन शत प्रतिशत सटीक है यथा रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून, किंतु क्या हम पानी के संरक्षण के प्रति जागरुक हैं मेरे विचार से तो बिल्कुल नहीं हैं। इसीलिए पानी के गंभीर संकट पर ध्यानाकर्षण हेतु 1993 से 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है।
अभी समाचार पत्रों की सुर्खियां थी कि वर्ष 2025 में भारत में गंभीर भूजल संकट उत्पन्न हो सकता है भारत की सिलिकॉन वैली बेंगलुरु में पेयजल के लिए अभी से त्राहि त्राहि मच गई है यही हाल कमोबेश संपूर्ण भारत में गर्मियों में होने वाला है। देश के अधिकतर ब्लॉक डार्क जोन में जा चुके हैं, भारत में 140 करोड़ जनसंख्या के अनुपात में विश्व का चार प्रतिशत जल ही पीने हेतु उपलब्ध है विश्व में 70% पानी है किंतु उसमें तीन प्रतिशत ही पीने योग्य है।
इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार तत्व- जलवायु परिवर्तन वनों की अंधाधुंध कटाई बेतरतीब जल दोहन जनसंख्या वृद्धि शहरीकरण औद्योगिकरण आदि सभी जल संकट का कारण रहे हैं।
जल संकट से बचना है तो अभी से शुरू करें ये उपाय- क्षतिग्रस्त पेयजल पाइपों से होने वाले जल की बर्बादी को रोकना, घरों में नलों के टोंटी लगाना, चलती वर्षा में भी नलकूप को जो चलाएं रखते हैं उन्हें बंद करना, दुकानों के आगे सड़क पर पानी के अनावश्यक छिड़काव को बंद करना, गाड़ी को पाइप के बजाय बाल्टी के पानी से धोना, नहाते दाढ़ी बनाते समय नल को खुला नहीं छोड़ना, सिंचाई हेतु ड्रिप सिस्टम काम में लेना, खेत का पानी खेत में।
इन छोटे-छोटे उपायों के अलावा सरकार द्वारा- योजना बनाकर नदियों को आपस में जोड़ना, नदियों का पानी समुद्र में जाने से रोकना, नदी नालों पर बांध बनाकर जल संचयन करना, उद्योगों , शहरों के सीवरेज के पानी को शोधित कर पीने योग्य व सिंचाई योग्य बनाना, बरसाती नदियों के अस्तित्व को बचाना आदि उपायों से आने वाले जल संकट से निजात पाई जा सकती है।
अंत में- बात पते की यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने घर की छत का पानी संग्रहण कर काम में ले तो महिलाओं को मटका लेकर दूर-दूर से पानी लाने की समस्या से बहुत हद तक समाधान हो सकता है।
जल है तो कल है ,जल ही जीवन है।
- लेखन:- मंगलचंद सैनी (पूर्व तहसीलदार)