जुबान खराब होना: दिमाग खराब होने की पहली निशानी - मुनि अतुल
भीलवाड़ा (राजस्थान/ बृजेश शर्मा) युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती शासन श्री मुनि रविंद्र कुमार एवं मुनि श्री अतुल कुमार तेरापंथ भवन, पुर में प्रवासित हैं । सायंकालीन प्रवचन माला में मुनि श्री अतुल कुमार ने कहा शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए, शांतिपूर्ण सहवास के लिए अगर सबसे बड़ी कोई कला है तो, वह है वाक् कला । बोलने की कला का प्रशिक्षण होना चाहिए । कहना हो तो कैसे कहें, कब कहें, कितना कहें इन पर खूब विचार कर लें । अनेक बार जो समस्याएं हमारे सामने आती हैं, उनका कारण यही है कि एक बात को अनेक बार कहते जाते हैं । उसकी प्रतिक्रिया सामने आती है। कहने की भी सीमा होनी चाहिए । एक बार कह दिया, सावधान कर दिया, अब दिन भर उसी की रट लगाए रहेंगे, तो सामने वाला अशांति में ना हो तो भी अशांति में चला जाएगा । जो शांति से रहना चाहते हैं उनके लिए जरूरी है वाणी का प्रशिक्षण । हमारे जितने भी व्यवहार हैं, उनमें प्रमुख व्यवहार है वाणी । आदमी खाता है निश्चित समय पर, सोता है निश्चित समय पर हर काम का प्राय कोई ना कोई निश्चित समय होता है। किंतु बोलने की प्रवृत्ति का कोई समय नहीं है । बातचीत करते हैं तो उसमें काम की बात बहुत कम और निकम्मी बात ज्यादा होती है। हम चिंतन करें कि दिन भर में जितना हम बोलते हैं, उसमें सार्थक कितना होता है, और निरर्थक कितना । आदमी शरीर से काम करता है तो कहता है कि अब मैं थक गया हूं, अब आराम करूंगा । सोचते सोचते भी आदमी थक जाता है । किंतु बोलने से पता नहीं क्यों नहीं थकता । सबसे ज्यादा व्यापार है वचन का । हमें सबसे ज्यादा ध्यान भी इसी पर देना होगा।
मुनिश्री ने कहा, इस बात पर गहराई से चिंतन कर लिया जाए तो मैं मानता हूं कि शांति की कुंजी हाथ में आ जाएगी । अप्रिय और कटु बोलने वाले के संबंधों में मधुरता नहीं रहती । जिस व्यक्ति के मुंह से कभी अपशब्द नहीं निकलता, जिस व्यक्ति के मुंह से दूसरों के मन में हीनता पैदा करने वाले शब्द नहीं निकलते, मेरी दृष्टि में वह सबसे बड़ा मौनी है । अगर मुझसे कोई पूछे कि सबसे बड़ा मौनी कौन??
मेरा उत्तर होगा जो अपनी वाणी से सब को प्रसन्न और सुखी रखता है । वह सबसे बड़ा मौनी है । ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे जो महीनों वर्षों तक मौन रहे किंतु जब मौन तोड़ा तो 1 महीने में ही सारी कसर निकाल दी। वर्तमान युग के हालात देखकर आश्चर्य होता है कि लड़ते झगड़ते भाई ही भाई को साला बोल देता है । ध्यान रखें जुबान खराब होना दिमाग खराब होने की पहली निशानी है । व्यवहार को बिगाड़ने और सुधारने में भाषा माध्यम है । मुनिश्री ने कहा कुछ लोग दिल में उतर जाते हैं कुछ लोग दिल से उतर जाते हैं । इसकी विभाजन रेखा है - वाक् कला । मीठा बोलने वाले की तो मिर्ची भी बिक जाती है, कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता । कौवा और कोयल बोली से पहचाने जाते हैं । मुनिश्री ने कहा मस्तिष्क की डिक्शनरी में अच्छे शब्दों का संग्रह रखना चाहिए । सारांश की भाषा में: "बोली बता देती है इंसान कैसा है, संस्कार बता देते हैं परिवार कैसा है, घमंड बता देता है कितना पैसा है और बहस बता देती है ज्ञान कैसा है ।