नदियों के कंठ सूखे-नालों की जीवन लीला समाप्त होने की संभावना: देश में सुखाड़ के चलते बाढ़ की सम्भावना जिम्मेदार कौन

Apr 11, 2022 - 02:44
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नदियों के कंठ सूखे-नालों की जीवन लीला समाप्त होने की संभावना: देश में सुखाड़ के चलते बाढ़ की सम्भावना जिम्मेदार कौन

आज देश में सुखाड़ के चलते चारों ओर पानी की किल्लत होने के साथ इस वर्ष औसत वर्षा 10 प्रतिशत कम होने की संभावना जताई जा रही है, नदियों के कंठ सुख रहें, नालों की जीवन लीला समाप्त होने पर  है, फिर भी बाड़ की संभावनाएं बनती जा रही। बाढ़ गांव, शहर, कस्बों में आती चली लेकिन हम यहां उस स्थान, शहर की ओर ध्यान दिलाने जा रहे हैं जहां कभी बाढ़ की समभावनायें नहीं बनीं। यहां की  प्राकृतिक व भौगोलिक स्थिति बाढ़ के बिल्कुल विपरीत होने के पश्चात भी आज सम्भावनाओं से ना नहीं किया जा सकता। वह कस्बा राजस्थान के अलवर जिले की नगरपालिका थानागाजी है।
थानागाजी कस्बे में बने होद जो दो सौ से ढाई सौ साल पहले ग्रामीण सामाजिक व्यवस्थाओं, समाज विज्ञान द्वारा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भौगोलिक स्थितियों का अध्ययन कर बनाया गया। पानी के इस छोटे तालाब(होद) में नो वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से  वर्षात का पानी आ कर एकत्रित होता,  जिसमें लाहाकाबास, हरनेर, भांगडोली,धैतल, नाथुसर,  थानागाजी के 40 प्रतिशत भु भाग का पानी एकत्रित होता।  पानी के बहाव क्षेत्र पर बढ़ते मानवीय दबाव, हौदं पर बन रही इमारतों, वर्षा जल के रास्तों पर बढ़ते अतिक्रमण, रास्तों के निर्माण से आज स्थिति बड़ी भयावाह (ख़राब)बनी हुई है, बगैर प्लान के कालोनियों का निर्माण भयावह स्थिति पैदा करने में सहायक होते नज़र आ रहे हैं।
बढ़ते अतिक्रमण से हौद के समाप्त होने से जिस प्रकार से कोई रोक नहीं सकता, उसी तरह बढ़ती बाड़ की आशंकाओं से भी नकारा नहीं जा सकता।
वर्षा जल संग्रह के इस केंद्र बिंदु के चारों ओर बनें प्राकृतिक जल परिवहन के नाले सो प्रतिशत अतिक्रमण के शिकार होने के साथ उन स्थानों को पांच से सात फुट ऊंचा कर दिया। जल के रास्तों पर बनें अवरोध भु माफियाओं के लिए लाभ का सोदा बन गये करोड़ कमा गये लेकिन आम जन आने वाले समय में संकटों से घिरा रहेगा, गंदगी का साम्राज्य बना रहे गा। अतिक्रमण को देखते हुए दुसरी तरफ यह भी देखने को मिलता है कि कालोनियों के कटने के साथ राज्स्व रिकार्ड से जल स्रोत व जल के रास्ते एका एक बदल जाते हैं या गायब हो जातें जो प्रशासन की सबसे बड़ी भूल के साथ भूमिका दिखाई देती है। 
जल स्रोतों, नदीयों, नालों, जोहडों के संरक्षण व सुरक्षा को लेकर कार्य कर रहे  एल पी एस विकास संस्थान के निदेशक रामभरोस मीणा ने सम्पूर्ण कस्बे का भोगौलिक अध्धयन कर पाया है कि वर्षा जल के बहाव क्षेत्र व जल पात्रों पर सो प्रतिशत अतिक्रमण हों चुका है, शहरी क्षेत्र में सिवायचक भूमि, नाले, बावड़ी,होदं जी अरबों की संपत्ति रही आज अतिक्रमण की चपेट में होने के साथ भु माफियाओं के बले बले हों गये। स्थानीय प्रशासन व सरकार को चाहिए कि वे इन भु भागों को पुनः अतिक्रमण से मुक्त कर सरकार अपने कब्जे में ले जिससे आने वाले समय में उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक व सामाजिक समस्याओं से निजात पा सके, अन्यथा वह दिन दूर नहीं की थानागाजी में बाड़ जैसी स्थिति से नकारा जा सके। लेखक के अपने निजी विचार है।

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