नदबई के सुभद्रा सेवा कुंज में श्री तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य पदम विभूषण स्वामी रामभद्राचार्य महाराज ने श्री राम कथा के दिए प्रवचन
नदबई के सुभद्रा सेवा कुंज में चल रही रामकथा, दीक्षा लेकर हनी शर्मा बने हरि कृष्ण दास-- स्वामी रामभद्राचार्य महाराज जी ने राम जी के बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा कि परम ब्रह्म परमात्मा ही राम रूप में अवतरित हुए । निराकार ब्रह्म निज भक्तों के कल्याण हेतु साकार रूप में आए। परमात्मा का अर्थ है परम अस्तित्व सर्व खलु इदं ब्रह्म ईश्वर एक है लेकिन भक्तों के लिए अनेक रूप धारण करते हैं। शरीर धारियों के लिए अव्यक्त परमात्मा में मन लगाना कठिन है इसलिए सगुण ब्रह्म की उपासना करते हैं
वैर ,भरतपुर(कौशलेंद्र दत्तात्रेय)
नदवई कस्वे के सेवा कुंज प्रांगण आदर्श टैगोर शिक्षा समिति में चल रही श्री तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य पदम विभूषण स्वामी रामभद्राचार्य महाराज जी की श्री राम कथा में राम बाल लीला के बारे में प्रवचन दिया ।जहां स्वामी रामभद्राचार्य महाराज जी ने राम जी के बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा कि परम ब्रह्म परमात्मा ही राम रूप में अवतरित हुए । निराकार ब्रह्म निज भक्तों के कल्याण हेतु साकार रूप में आए। परमात्मा का अर्थ है परम अस्तित्व सर्व खलु इदं ब्रह्म ईश्वर एक है लेकिन भक्तों के लिए अनेक रूप धारण करते हैं।
शरीर धारियों के लिए अव्यक्त परमात्मा में मन लगाना कठिन है इसलिए सगुण ब्रह्म की उपासना करते हैं भक्ति मार्ग सरस भी है और सरल भी। आगे कथा में कहते हैं कि गुरु गृह गए पढ़न रघुराई शिक्षा ग्रहण करना परम आवश्यक है आज शिक्षक कितनी बदल गई है याद रखना चाहिए कि प्रलय और निर्माण दोनों शिक्षक की गोद में पलते हैं। इसलिए समाज और राष्ट्र में सबसे महत्वपूर्ण कार्य शिक्षक का है ।गुरु वशिष्ट जी की तरह शिक्षक को शीलवान और कर्म निष्ठ होना चाहिए। शीलवंत शिक्षक छात्र को नई दिशा देता है सतत छात्रों का हित शिक्षक का लक्ष्य होना चाहिए। श्री राम कथा सुनने के लिए हजारों की संख्या में लोग सुभद्रा सेवाकुंज प्रांगण में पहुंचे। श्री राम कथा को कस्बे के लोगों तक पहुंचाने के लिए मुख्य बाजार में लाउडस्पीकर लगाए गए हैं। राम कथा के बाद शाम को महाआरती कर भक्तों के लिए प्रसादी वितरित की गई। पद्म विभूषण स्वामी रामभद्राचार्य महाराज जी की चल रही श्री राम कथा में पिपरऊ निवासी रामाशंकर शर्मा के पुत्र हनी शर्मा ने दीक्षा ली।हनी दीक्षा लेने के बाद हरिकृष्ण दास बन गए।