धोरों की धरती पर चलता रेगिस्तानी जहाज
ककराना (झुंझुणु,राजस्थान/ सुमेरसिंह राव) उपखण्ड उदयपुरवाटी क्षेत्र में शुक्रवार को प्रात: 11.30 बजे राजस्थान की खूबसूरती धोरों की धरती पर चलता रेगिस्तानी जहाज का टोळा आज अचानक ही लोगों में कौतूहल पैदा कर दिया है। राजस्थान की धरती से लुप्त होता रेगिस्तानी जहाज सैकड़ो की संख्या में चलता देख लोगों के मन को समा गया। राजस्थान रे लोगां की सवारी, देश की सेना की सवारी, विदेशी पर्यटकों की सवारी, ओर तो ओर भूतकाल में बीन राजा की भी यही सवारी होती थी। जिस घर में यह पशु होता था वह घर बड़ा ही सम्पन्न समझा जाता था। किसान का हल जोतना, गाड़ी में जोतना, सवारी करना, कुंए से पानी निकालना, इत्यादि कार्यों में कितना उपयोगी है ये रेगिस्तानी जहाज। आज प्रायः सभी लोगों ने इसको भूला सा दिया है।इन ग्वालों ने बताया कि पहले जोधपुर, नागौर,पाली आदि जिलों से लोग ऊंटों का टोला लिए इधर से होते हुए चूरु जिला तक चराने जाते थे। अब तो कोई इक्का-दुक्का टोला बचा है। जिस को भी हम अपनी भूख-प्यास दबाए इनको बचाने में लगे हुए हैं। चारे-पानी की तलाश करते हुए आगे बढ़ते जाते हैं, और जहां भी टोले के बैठने की जगह मिल जाती है,वही ये लोग धरती रुपी बिछोना व आसमानी रुपी चदर ओढ़ रात्रि विश्राम कर लेते हैं। ये लोग गर्मी सर्दी वर्षा इन तीनों के थपेड़ो को सहकर इनका पेट पालते हैं।इन ग्वालों के अनुसार टोले में नर व मादा जातियों के ऊंट-ऊंटनी तथा इनके छोटे बच्चे भी टोळे में हैं। हम जहां भी रात्रि विश्राम करते हैं, दुधारू ऊंटनियो का दूध निकाल कर कुछ पी लेंते हैं और शेष को वहीं बेच देते हैं , उन्होंने बताया कि ऊंटनी का दूध ताकतवर व अनेकों विटामिनों से भरपूर होता है। आज इस पशु धन को बचाना भी बहुत ही मुश्किल हो रहा है। रेगिस्तानी जहाज को बचाने के लिए सरकार व पशु प्रेमी किसानों को इस ओर ध्यान देने की महती आवश्यकता है अन्यथा यह पशु कुछ ही दिनों में लुप्त हो जाएगा। इसके चारे-पानी की व्यवस्था तथा। इस के होती बीमारियों से बचाव के उपाय करने चाहिए। इस मौके पर छाजू राम सैनी, बनवारी लाल नौलखी, बिहारी लाल नौवड़ी, अनिल बांकली, वेद प्रकाश तूराला, राहुल तूराला आदि सैकड़ों दर्शक खड़े रेगिस्तानी जहाज को निहार रहे थे ।