बाह्य आभूषण भार, आध्यात्मिक आभूषण उपहार - शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण
भीलवाड़ा / बृजेश शर्मा
वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में वर्ष 2021 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को अपनी मंगलवाणी से लोगों को अपने शरीर को बाह्य आभूषण से नहीं, आध्यात्मिक आभूषण व गुणात्मक आभूषण से सुसज्जीत कर अपना कल्याण करने की पावन प्रेरणा प्रदान की।
भीलवाड़ा नगरी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी से नियमित रूप से भावित हो रही है। कोरोना काल के कारण वर्चुअल रूप से आयोजित होने वाले कार्यक्रम से देश-विदेश के श्रद्धालु लाभान्वित हो रहे हैं। प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जैन आगम में पांच प्रकार के शरीर बताए गए हैं। इस जीवनकाल में जो शरीर आदमी का उपयोग आ रहा है, उसे औदारिक शरीर कहते हैं। यह शरीर साधना के काम आता है। इस शरीर से धर्म भी होता है और पाप भी होता है। यह आदमी के ऊपर निर्भर करता है कि वह अपने शरीर का किस प्रकार उपयोग करता है, उसे धर्म में नियोजित करता है अथवा पाप में। गुरुदेव ने आगे कहा कि आदमी आभूषणों आदि से अपने शरीर को सुसज्जित करता है, किन्तु उससे आत्मा का कल्याण नहीं होता। आदमी अपने शरीर को आध्यात्मिक व गुणात्मक आभूषणों से सुशोभित करने का प्रयास करे तो उसकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। आध्यात्मिक आभूषणों की विस्तृत व्याख्या करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि किसी साधु आदि को शुद्ध दान देना हाथ का आभूषण होता है। गुरु चरणों की वन्दना में सिर का झुकना सिर का आभूषण होता है। सत्य भाषण, मधुर व प्रिय वाणी हमारे मुख का आभूषण है। कान से आगमवाणी सुनना, संतों का प्रवचन सुनना आदि कान का आभूषण है। इसी प्रकार अच्छे विचार हृदय के आभूषण हैं। शारीरिक बल का आभूषण किसी की सेवा करना है। आदमी के पास कुछ न भी हो और उसकी भावना है, तो यह भी अच्छी बात होती है। इस प्रकार विद्या दान, ज्ञान दान, अभय दान को सर्वोच्च दान माना गया है। इन सभी आध्यात्मिक आभूषणों को धारण करना मुश्किल तो है, किन्तु जितना हो सके इन आध्यात्मिक आभूषणों को धारण करने का प्रयास होना चाहिए, ताकि आत्मा का कल्याण हो सके। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व कार्यक्रम में साध्वीवर्या साध्वी संबुद्धयशाजी ने ‘मन निर्मलता को प्राप्त करो, आनंद तुम्हें मिल जाएगा’ का संगान किया।