धड़ल्ले से घूम रहे गांवो में फर्जी सरपंच, अभी भी महिला सरपंचों की जगह काम कर रहे उनके प्रतिनिधि
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को आगे लाने के लिए पंच, सरपंच एवं पंचायत समिति सदस्य के लिए महिलाओं की आरक्षित सीटें लागू की गई। जिस पर महिलाओं ने चुनाव लड़ा और अब वह पंच सरपंच और पंचायत समिति सदस्य के पद पर बनी हुई है।
बावजूद इसके वह घर की चारदीवारी के भीतर ही कैद होकर रह गई है। बहुत सारी ग्राम पंचायतों में आज महिलाएं सरपंच हैं और उनका कार्य सिर्फ कागजों में हस्ताक्षर करने तक सीमित रह गया है। उनका दायरा जहां उनके हस्ताक्षर की आवश्यकता पड़ती है वहीं तक रह गया है।
बाकी पूरा कार्य उनके प्रतिनिधि के रूप में उनके पति, ससुर अथवा बेटे देख रहे हैं। ऐसे में प्रशासनिक अधिकारियों की एक मजबूरी हो जाती है कि वह संपूर्ण जानकारी सरपंच प्रतिनिधि से ही प्राप्त करते हैं। सरपंच स्वयं किसी भी तरह की जानकारी देने में असमर्थ पाई जाती है। वही मीडिया कर्मियों को भी कोई जानकारी सरपंच की बजाय उसके प्रतिनिधि द्वारा ही उपलब्ध करवाई जाती है जो की गलत है।
जिसमें जानकारियों की सत्यता में परिवर्तन होना संभव हो सकता है। जबकि नियम अनुसार पंचायत कार्यालय में सरपंच स्वयं उपस्थित होंगी और संपूर्ण मीटिंग में वही भाग लेंगी उनके जनप्रतिनिधि नहीं। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है वहां सरपंच प्रतिनिधि ही आकर सरपंच की कार्यवाही कर रहे है। ताज्जुब की बात तो यह है कि जहां पर ग्राम विकास अधिकारी, एएनएम, जीएनएम, पटवारी और कोर कमेटी के सदस्य भी इस बात के लिए सरपंच प्रतिनिधि को ही सरपंच मानते हैं।
दूसरी बात यह सरपंच प्रतिनिधि गांव में और संपूर्ण पंचायत में घूम घूम कर अपने आपको सरपंच कहलवाना पसंद करते हैं। और अपने वाहन पर भी सरपंच लिखवाकर रखते हैं। जबकि कई ग्राम पंचायतों में आमजन को यह तक मालूम नहीं कि उनका सरपंच कौन है?
क्योंकि सरपंच से जब भी मुलाकात हुई या कोई काम हुआ तो सरपंच का यह प्रतिनिधि ही अपने आप को सरपंच बता कर पूछता है और जो भी जानकारी लेनी हो दे देता है।
जब इनको कोई इनको कहता है सरपंच साहेब राम राम तो फूले नहीं समाते ये फर्जी सरपंच जब ग्राम पंचायत क्षेत्र से किसी समस्या के लिए फोन आता है तो मोके पर ये फर्जी सरपंच ही पहुंचते हैं।
आज भी ग्रामीण क्षेत्र में तो सरपंच प्रतिनिधि को ही अपना सरपंच मानते हैं। क्योंकि ना तो कभी चुनावों के समय उन्होंने सरपंच को देखा और ना ही किसी अन्य कार्यक्रम में। क्योंकि जहां भी जो भी कार्यक्रम होता है वहां सरपंच के तौर पर सरपंच प्रतिनिधि ही पहुंचता है। ऐसे में सवाल उठता है कि महिलाओं को आरक्षण देने का वास्तविक फायदा क्या वह महिलाओं को हो रहा है? इतना करने के बावजूद भी महिलाएं अपने अधिकारों को नहीं पहचान पा रही हैं। और वह घर की चार दीवारी में सिमट कर रह गई है। अब सवाल यह उठता है कि अब इसमें गलती किसकी है?
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संजय बागड़ी