अनुस्त्रोत और प्रति स्त्रोत में अंतर समझना आवश्यक है।: आचार्य महाश्रमण
भीलवाडा / बृजेश शर्मा
तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा आयोजित (दो दिवसीय) 5 वे राष्ट्रीय कॉर्पोरेट कॉन्फ्रेंस में तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा देते हुए कहा कि, दो शब्द व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण है अनुस्त्रोत और प्रतिस्रोत । अनु स्त्रोत में चलना आसान होता है लेकिन प्रति स्रोत में चलना कठिन होता है। प्रवाह के साथ-साथ आसानी से चला जा सकता है, प्रवाह के विपरीत चलना कठिन होता है। लकड़ी का टुकड़ा पानी के साथ साथ आसानी से तेर सकता है, हवा यदि पीछे से चले तो रास्ता आसान होता है लेकिन अगर सामने से हो तो चलने में मुश्किल होती है। आचार्य श्री ने कहा कि आज व्यक्ति बहुत अधिक सुविधा युक्त जीवन यापन करने में लगा हुआ है लेकिन व्यक्तित्व निर्माण, त्याग और कम सुविधाओं में जीवन यापन करने से ही हो सकता है। जो लोग आर्थिक मामलों में जुड़े हुए होते हैं उन्हें पैसों के मोल भाव में नेतिक होना अति आवश्यक है। अत्यधिक पैसे के कारण गलत प्रवृतियां भी पनप सकती है। ऐसे में व्यक्ति को ईमानदारी रखते हुए ऑनेस्टी इस द बेस्ट पॉलिसी के वाक्य को चरितार्थ करते हुए जीवन यापन करना चाहिए।
आचार्यप्रवर ने जीवन मे कंफर्टज़ोन से बाहर निकल कर और अच्छे लोगों के जीवन से प्रेरणा लेकर स्वयं को चैलेंज देकर अपने जीवन को प्रगतिशील बनाने का पाथेय दिया।
कॉन्फ्रेंस कन्वीनर सीए नवीन वागरेचा ने बताया कि कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बिलासपुर न्यायाधीश महोदय श्री गौतम जी चोरड़िया ने कॉर्पोरेट व्यवसाय एवं न्यायिक व्यवस्था में कैसे तालमेल हो सके इस बारे में कहा। कॉन्फ्रेंस की थीम चैलेंज योरसेल्फ को केसे चरितार्थ करे इस पर अपना उद्बोधन दिया।
प्रथम सत्र की शुरुआत संस्था के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि श्री रजनीश कुमार जी के मंगल उद्बोधन से हुई। मुनि श्री ने बताया कि जिंदगी की चुनौतियों को पार कर ही सफलता मिलती है। दिन भर की भागदौड़ भरी जिंदगी में घर के बच्चों को संस्कारवान बनाना भी एक चुनौती है। व्यवसाय में प्रगति करना भी एक चुनौती है, बड़े घरानों के सामने नया व्यवसाय खड़ा करना एक बड़ी चुनौती है।
व्यवसाय में नैतिकता रखते हुए प्रगति करना भी एक चुनौती है।आध्यात्मिकता से प्रमाणिकता और नैतिकता का समावेश करना आसान हो जाता है।द्वितीय सत्र में साध्वी श्री समता प्रभा जी ने बताया कि लोगों की भीड़ में व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है। व्यक्ति के मन में भिन्न भिन्न भय के कारण व्यक्ति कंफर्ट ज़ोन के बाहर आने में डरता है , जिसके कारण बंधन हो जाते हैं और इससे व्यक्ति की प्रगति रुक जाती है। पैसा इकट्ठा करना और कंजूस होने में फर्क है। पैसा कमाने से ज्यादा पैसे का प्रबन्धन ज्यादा महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण है।
दुनिया के करीब जा रहे हैं ओर स्वयं से दूर जा रहे हैं। जरूरत पड़ने पर ना कहने कि कला भी आनी चाहिए।
तृतीय सेशन में सभी प्रोफेशनल्स का आपसी परिचय हुआ, सभी ने अपने जीवन के अनुभव और अपने व्यापार और व्यवसाय के बारे ने बताया।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पंकज ओस्तवाल, राष्ट्रीय सहमंत्री नवीन वागरेचा, राष्ट्रीय कमिटी मेंबर विनोद पितलिया, चेयरमैन राकेश सुतरिया, ब्रांच सचिव अभिषेक कोठारी, अजय नोलखा, अलिंद नैनावटी , सपना कोठरी, सोनल मारू एवं सीए, सी एस, सीएमए, टैक्स बार एसोसियेशन के पदाधिकारी मौजूद थे।
भीलवाड़ा ब्रांच के अध्यक्ष राकेश सुतरिया , चातुर्मास महामंत्री निर्मल गोखरू एवं कार्यक्रम प्रायोजक सूरत अमेरिका में प्रवासीत विजय कुमार जी जयेश कुमार जी बड़ोला के परिवार से ज्ञान चंद जी बडोला ने सभी को स्वागत किया।
कार्यक्रम में नवीन वागरेचा, विनोद पितलिया, प्रीति मेहता, गौतम चोरड़िया ने अपने विचार रखे।कार्यक्रम में अहमदाबाद उदयपुर बारडोली सूरत आमेट एवं भीलवाड़ा के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।