राजस्थान पत्रिका के मीडिया कर्मचारियों को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत
अलवर / उदित सक्सेना
पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ देने से बचने के लिए फोर्ट फोलिएज नाम की एक कंपनी का रातों-रात गठन किया और अपने अधिकांश कर्मचारियों की सेवाओं को उसमें स्थानांतरित कर दिया।
जब पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं किया तो तमाम कर्मचारियों ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश अनुसार श्रम न्यायालय में बकाया एवं मजीठिया अनुसार वेतन के भुगतान के लिए अपने दावे प्रस्तुत किए।
श्रम न्यायालय में पत्रिका द्वारा कहा गया कि उक्त कर्मचारी उनके नहीं हैं बल्कि मैन पावर सप्लाई कंपनी फोर्ट फोलिएज प्राइवेट लिमिटेड के कर्मचारी हैं जिन पर मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसा लागू नहीं होती है। इसके बाद कर्मचारियों ने न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत किया कि पत्रिका बताए कि कर्मचारी उनके यहां किस पद पर कार्यरत था, क्या कार्य करता था, उस पर किसका सुपरविजन था, सुपरविजन करने वाले अधिकारी कर्मचारी का नाम क्या था, उसकी नियुक्ति प्रक्रिया क्या थी, वेतन का भुगतान किसके द्वारा किस माध्यम से किया जाता था इत्यादि इत्यादि।
आवेदन पर माननीय श्रम न्यायालय ने आदेश दिया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में जल्द निर्णय के लिए इन तथ्यों का न्यायालय के संज्ञान में होना आवश्यक है। अतः पत्रिका संस्थान इन तथ्यों से न्यायालय को अवगत कराए। अवगत न कराने की स्थिति में पत्रिका संस्थान इन बिंदुओं पर कर्मचारी से प्रतिपरीक्षण करने से वंचित रहेगी।
श्रम न्यायालय के आदेश के खिलाफ पत्रिका संस्थान ने ग्वालियर उच्च न्यायालय में अपील की, जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस जीएस आहलूवालिया ने आदेश दिया कि श्रम न्यायाधीश ने जो आदेश दिया है वह बिल्कुल ठीक है। उन्हें पत्रिका के विरुद्ध और कड़ा आदेश करना था। साथ ही उन्होंने अपने आदेश में कहा कि दस्तावेजों को देखने के बाद स्पष्ट होता है कि पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ कर्मचारियों को देने से बचने के लिए दस्तावेजों का दुरुपयोग करते हुए एक फर्जी कंपनी फोर्ट फोलिएज गठित की है।
पत्रिका ने जस्टिस जीएस आहलूवालिया के आदेश को डिविजनल बेंच ग्वालियर हाईकोर्ट में चुनौती दी जहां माननीय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि सिंगल बेंच का आदेश ठीक है। साथ ही उन्होंने अपने आदेश में कहा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मजीठिया मामलों को 6 माह में निराकृत करने का आदेश दिया है पर प्रकरण को देखते हुए स्पष्ट होता है कि पत्रिका संस्थान जानबूझकर प्रकरण में विलंब कार्य कर रही है ऐसे में पत्रिका पर माननीय न्यायालय ने ₹10000 का अर्थदंड और ₹25000 न्यायालय में दंड स्वरूप जमा कराने के निर्देश दिए थे।
न्यायालय द्वारा पत्रिका के षड्यंत्र का पर्दाफाश होने से बौखलाए मालिकों ने बचने के लिए माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। कल दिनांक 17 दिसंबर 2020 को कोर्ट क्रमांक 9 में मामले की सुनवाई हुई जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पत्रिका की याचिका को खारिज कर दिया।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद उच्च न्यायालय ग्वालियर की उस टिप्पणी पर स्थाई मोहर लग गई जिसमें कहा गया था कि पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसाओं का लाभ कर्मचारियों को देने से बचने के लिए पेपर अरेंजमेंट करते हुए एक फर्जी कंपनी का गठन किया है।