गुरु शिष्य का नाता परम अध्यात्मिक व परम पवित्र नाता:- श्री हरि चैतन्य महाप्रभु
इस वर्ष श्री हरि कृपा आश्रम में नहीं हो रहा विराट धर्म सम्मेलन, श्री हरि कृपा आश्रम में मची हरी नाम की धूम, आश्रम में उपस्थित लोग ही सादगी पूर्वक मना रहे हैं श्री गुरू पूर्णिमा महोत्सव
कामां (भरतपुर,राजस्थान/ हरिओम मीणा) श्री हरि कृपा पीठाधीश्वर श्री हरि चैतन्य पुरी जी महाराज ने आज यहां श्री हरि कृपा आश्रम में "श्री गुरु पूर्णिमा" के पावन अवसर पर कहा कि गुरु शिष्य का नाता साधारण नाता नहीं अपितु परम आत्मिक, परम अध्यात्मिक व परम पवित्र नाता है। लेकिन दुर्भाग्यवश वहीं उच्च नाता आज अंधे और बहरे का नाता नजर आ रहा है, वह गुरु अंधा है जो शिष्य की कमियां नहीं देखता यदि देखता है तो उन्हें बताता नहीं, तुच्छ स्वार्थों के कारण। तथा वह शिष्य बहरा है जो गुरु के उपदेश को सुनता नहीं, यदि सुनता है तो समझकर जीवन में नहीं उतारता। यद्यपि गुरु का बहुत ही उच्च स्थान है, यदि यह कह दिया जाए कि गुरु ही ब्रह्मा (सद्गुणों को उत्पन्न करने वाला),गुरु ही विष्णु (उपदेशों के द्वारा उन सद्गुणों का पालन करने वाला), गुरु ही शंकर (जो कि दुर्गुणों व विकारों का संहार करने वाला)है। परम ब्रह्म परमात्मा का पृथ्वी पर देहधारी स्वरूप है सद्गुरु, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यदि यह भी कह दिया जाए कि ब्रह्मा, विष्णु,शंकर इत्यादि भी बिना गुरु के भवसागर से पार नहीं हो सकते तो अतिशयोक्ति नहीं, परंतु इतना उच्च पद रखने वाला गुरु यदि शिष्य को उसकी वास्तविकता से अवगत नहीं कराता, उसके संदेह, अज्ञान आदि का निवारण नहीं करता, कथनी व करनी के अंतर को मिटाकर उपदेश नहीं करता, मात्र उसका धन हरण करता है ऐसा गुरु अपने शिष्यों को नरक की यात्नाओं से क्या बचाएगा वह तो स्वयं ही नर्क गामी होगा।
उन्होंने जिस सतगुरु की सेवा करके श्री राम, श्री कृष्ण इत्यादि अवतारों ने भी उसकी महिमा को प्रतिस्थापित किया है। उस गुरु की महिमा को करने की सामर्थ्य हमारी नहीं हो सकती। परंतु इतना तो अवश्य कह सकते हैं कि शिष्य को, गुरु को एक मानव नहीं मानव रूप में साक्षात परमात्मा का स्वरूप समझे, पर गुरु स्वयं को भगवान ना समझ बैठे। शिष्य अपना तन, मन,धन सब सद्गुरु के चरणो में अर्पण कर दें, लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि गुरु सब कुछ लेकर चलता बने। जो शिष्य के धन,संपत्ति इत्यादि पर ही नजर रखता है, वह गुरु कहलाने लायक भी नहीं हो सकता। आजकल दुर्भाग्यवश तथा कथित गुरुओं की ही बाढ़ आ गई है। हम सभी सद्गुरु के बताए रास्ते पर चलें, हम गुरुओं की पूजा करते हैं, लेकिन उनकी सबसे बड़ी व सच्ची सेवा पूजा उस शिष्य ने की है जो उनके बताए रास्ते पर चलते हैं। हम अधिकांशत संतों,गुरुओं,अवतारों व ग्रंथों को मानते हैं परंतु उनकी नहीं मानते। एक मात्रा के अंतर से सारे लाभ से वंचित रह जाते हैं मात्र उनको नहीं उनकी भी माने। संत, गुरु या प्रभु का मिलना सौभाग्य की बात है परंतु उनकी मानना हमें परम सौभाग्यशाली बना देगा। अच्छे डॉक्टर का मिलना रोगी के लिए सौभाग्य की बात है परंतु यदि वह रोग से निवृत्ति पूर्ण स्वास्थ्य चाहता है तो डॉक्टर ने जो दवा दी है उसका उपयोग करें, व उसके बताए परहेज़ के अनुसार चले।
आज श्री महाराज जी ने तीर्थराज विमल कुंड का दुग्ध अभिषेक करके भारत सहित संपूर्ण विश्व के लिए प्रार्थना की तथा आश्रम में उपस्थित श्री महाराज जी के भक्तों व शिष्यों ने आश्रम परिसर में ही कलश यात्रा निकालकर श्री रघुनाथ जी व श्री चैतन्येश्वर महादेव का पूजन किया । श्री महाराज जी ने अखण्ड श्री रामचरितमानस पाठ प्रारंभ किया जिस का समापन कल (आज) होगा । श्री महाराज जी के दिव्य संदेश का सीधा प्रसारण होगा जिसमें उनके देश विदेश के असंख्य भक्त घरों में बैठकर ही लाभ उठा सकेंगे। संपूर्ण कार्यक्रम में सरकार के द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों का पालन करते हुए सादगी से ही भक्त सम्मिलित हो रहे हैं मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए।