नीलकंठ मंदिर स्थित अनूठी गौशाला जहां सेवा के लिए मचती है भक्तों में होड़
भीलवाड़ा (राजस्थान/बृजेश शर्मा/रानू शर्मा) सावन मास के इस पावन अवसर पर ऐसे शिव मंदिर में पहुंची जहां स्थित है एक अनूठी गौशाला, इन गोवंश की सेवा के लिए मचती है भक्तों में होड़।
भीलवाड़ा मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर स्थित मांडल कस्बा जो अपनी सांस्कृतिक धरोहर से विश्व विख्यात है। उन्हीं धरोहरों में शामिल है मेजा रोड स्थित, नीलकंठ महादेव मंदिर। कई वर्ष पुराने इस मंदिर में श्रावण मास में नित्य प्रतिदिन विशेष पूजा अर्चना व निज मंदिर का विशेष श्रृंगार किया जाता है। यहां पर कई महंतों की छतरियां बनी हुई है जो आकर्षण का केंद्र है। कुछ वर्षों पूर्व यहां के हनुमान मंदिर का भी जीर्णोद्धार किया गया। यहां एक प्राचीन बावड़ी भी स्थित है जिसमें कई प्रजाति के कछुए मौजूद है। यहाँ आने वाले भक्तों ने बताया कि इस मंदिर में कई दशकों पूर्व हिरण और खरगोश की अठखेलियां नजर आती थी,जो समय के साथ लुप्त हो गयी। इन सभी पौराणिक इतिहास के बीच आज से आठ-दस वर्ष पूर्व एक नया अध्याय लिखा गया। यहां स्थित गौशाला जहां छोटी-बड़ी सभी मिलाकर लगभग 40 से 50 गोवंश है, लेकिन गोवंशो की सेवा के लिए गो भक्त सुबह जल्दी ही यहां के छोटे महाराज वीरम पुरी जी के सानिध्य में अपनी सेवाएं प्रारम्भ करते हैं, कई भक्तों खेत में घास काटते दिखाई देते हैं तो कई भक्त गायों से प्राप्त दूध को गर्म करने में तो कई भक्त गायों को चारा डालने में तो कोई इन गोवंश को देने वाले आहार बनाने में जुटे दिखाई देते हैं। विशेषकर महिलाएं भी इन कार्यो में पीछे नही रहती वह भी सुबह से ही साफ सफाई करने में, गोबर उठाने में,चारा लाने में व्यस्त दिखाई देती है। यहां इन गोवंशो के लिए गर्मी से निजात पाने के लिए बाकायदा पंखों की व्यवस्था भी है। इन गोवंशो को भक्तों द्वारा सुबह-सुबह मधुर संगीत भी सुनाया जाता है। वास्तव में यह छोटी सी गौशाला अपने आप में एक अनूठी कहानी समेटे हुए है। श्रावण मास में समय-समय पर हरियाली को विशेष महत्व देने के लिए कई व्यक्ति पौधा रोपण करते नजर आते हैं। ऐसा ही दृश्य आज मंदिर के महंत महंत दीपक पुरी जी के सानिध्य में एक परिवार बिल्वपत्र का पौधा लगाता दिखा। परिवार ने पर्यावरण के प्रति अपनी आस्था व प्रकृति प्रेम के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए,पौधरोपण कर इसके संरक्षण की जिम्मेदारी ली। श्रावण मास में निज मंदिर में दोनों समय भगवान शिव की ढोल नगाड़े व घंटियों की मधुर ध्वनि के साथ महाआरती की जाती है जिसमें गांव की महिलाएं, बच्चे, बड़े बुजुर्ग सभी हिस्सा लेते हैं। आरती पश्चात प्रसाद वितरण किया जाता है। कोरोना महामारी ने भले ही लोगों का घरों से बाहर निकलना कम कर किया परंतु ईश्वर के प्रति आस्था, सेवा व भक्ति में जरूर इजाफा हुआ है।