संतान प्राप्ति के लिए इस दिन की जाती है वीर गोगादेव की पूजा
हनुमानगढ़ (राजस्थान/बृजेश शर्मा) भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को गोगा नवमी का पर्व मनाया जाता है। गोगादेव राजस्थान के लोक देवता हैं, जिन्हें जाहरवीर गोगा के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां इस दिन मेला लगता है।
मंगलवार को गोगा नवमी का पर्व हर्षोल्लास एव धूमधाम के साथ मनाया जाएगा। गोगादेव राजस्थान के लोक देवता हैं, जिन्हें जाहरवीर गोगा के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब और हरियाणा सहित हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में भी इस पर्व को बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गोगा महाराज की पूजा से सर्पदंश का खतरा नहीं रहता है और संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।
- ऐसे हुआ था जन्म
राजस्थान के महापुरुष कहे जाने वाले गोगाजी का जन्म गुरु गोरखनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। गोगा जी की माँ बाछल देवी निसंतान थीं। संतान प्राप्ति के सभी प्रयत्न करने के बाद भी उनको कोई संतान नहीं हुई।
-एक बार गुरु गोरखनाथ गोगामेड़ी पर तपस्या करने आए। बाछल देवी उनकी शरण में गई तथा गोरखनाथ ने उनको पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और साथ में गुगल नामक अभिमंत्रित किया हुआ फल उन्हें प्रसाद के रूप में दिया। साथ ही आशीर्वाद दिया कि उसका पुत्र वीर तथा नागों को वश में करने वाला तथा सिद्धों का शिरोमणि होगा। इस प्रकार रानी बाछल को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनका नाम गुग्गा रखा गया।
- पूजा-अर्चना का विधान
गोगा नवमी के दिन स्नानादि करके गोगा देव की या तो मिटटी की मूर्ति को घर पर लाकर या घोड़े पर सवार वीर गोगा जी की तस्वीर को रोली, चावल, पुष्प, गंगाजल आदि से पूजन करना चाहिए। खीर, चूरमा, गुलगुले आदि का प्रसाद लगाएं एवं चने की दाल गोगा जी के घोड़े पर श्रद्धापूर्वक चढ़ाएं। भक्तगण गोगा जी की कथा का श्रवण और वाचन कर नागदेवता की पूजा-अर्चना करते हैं। कहीं-कहीं तो सांप की बांबी की पूजा भी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से नागों के देव गोगा जी महाराज की पूजा करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।