राघव तुम्हारी याद ना दिल से भुला रही है आ जाओ तुम दुबारा यह दुनिया बुला रही
हिंदी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार डॉ रांगेय राघव की जयंती
भरतपुर (राजस्थान/ कौशलेंद्र दत्तात्रेय) हिंदी साहित्य के साहित्यकार डॉ.रांगेय राघव की जयंती 17 जनवरी मंगलवार को मनाई जाएगी। वैर के ख्याल गायक मदन लाल पंजाबी कहते हैं कि राघव तुम्हारी याद न दिल से भुला रही है, आ जाओ तुम दुबारा यह दुनिया बुला रही है। ये पंक्तियां आज भी इस कलाकार की ओर से क्षेत्र में आयोजित होने वाले कवि सम्मेलन व कीर्तन मंडलों में गुनगुनाई बनाई जाती है ।बरबस लोगों के ध्यान में अपने आप ही डॉ. रांगेय राघव की जीवंत झलक दिखाई देने लगती है। डॉ.रांगेय राघव की मंगलवार को जयंती है। जिन्होंने अपनी लेखनी से कस्बा वैर का नाम विश्व पटल पर पहुंचाया। लेकिन उनका सपना वैर में तपोभूमि विश्वविद्यालय बनाने का आज भी एक अधूरा सपना बना हुआ है। बे लेखनी की धनी थे
जिन्होंने मात्र 39 वर्ष की अल्पायु में 150 से अधिक साहित्य, कहानी, काव्य पाठ, नाटक आदि की पुस्तकें लिखी जो देश विदेश में विख्यात हो गई और हिंदी भाषी पुस्तकों के ज्ञान से युवा पीढ़ी में देश की आजादी के प्रति अलख जगा दी। आज भी इनकी पुस्तकों के प्रति भारत में ही नहीं विश्व के कई देशों के लोग पढना पसंद करते हैं। उन्होंने कस्बा वैर स्थित श्री सीताराम मंदिर में ही सहज,सादे ग्रामीण अंचल में रचनात्मक साहित्य का आकार गढना शुरू किया, जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और देश आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था, तब इनकी सृजन शक्ति अपने प्रकाशन का मार्ग तलाश रही थी। डॉ.रागेय राघव ने अनुभव किया कि मातृभाषा हिंदी से देशवासियों के मन में देश के प्रति निष्ठा और स्वतंत्रता की अलख जगाई जा सकती है। राघव कैंसर से पीड़ित होने पर भी जीवन के अंतिम दिनों में भी कृतियां लेखन में व्यस्त रहते। उनका अंतिम उपन्यास आखरी आवाज था
आगरा में हुआ जन्म, कर्म स्थली वैर - डॉ .रांगेय राघव का जन्म 17 जनवरी 1923 को आगरा में हुआ। जिनके पूर्वज करीब 300 साल पहले दक्षिण भारत से जयपुर और फिर वैर स्थित श्री सीताराम जी मंदिर की पूजा पाठ करते थे उनके पिता रंगाचार्य सहित अन्य पूर्वज भी बड़े विद्वान रहे। डॉ.रागेय राघव के पिता का नाम रंगाचार्य, माता कनकवल्ली एवं धर्मपत्नी का सुलोचना राघव था। डॉ .रांगेय राघव का नाम तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था।इनको प्यार से पप्पू भी कहा जाता था। कस्बा की प्रताप फुलवाड़ी,दौला वाला बाग और नौ लखा बाग उनकी रचनाओं में आज भी दिखाई पड़ते हैं। लेकिन समय के साथ जितनी दूर रांगेय राघव चले गए उसी प्रकार दौला बाग व नौ लखा बाग भी अपना अस्तित्व खो चुके हैं। डॉ .रांगेय राघव ने मुम्बई के अस्पताल में कैंसर रोग का उपचार कराते समय 12 सितंबर 1962 को अन्तिम सांस ली।