जब तक जीवन में धन के महत्व की बुद्धि बनी रहेगी तब तक भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती- पंडित मुरारी लाल
डीग (भरतपुर,राजस्थान/ पदम जैन) आपके हृदय में भगवान का वास है, तो श्री हरी पाप, पाखंड, रजोगुण, तमोगुण से हमेशा दूर रखते हैं। यह बात कस्बे के ऐतिहासिक लक्ष्मण मंदिर पर बाबा शिवराम दास के सानिध्य में चल रही श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान व्यासपीठ पर विराजमान मंदिर के महंत पंडित मुरारी लाल पाराशर ने कहे। उन्होंने कहा कि भगवान उन्हीं के हृदय में वास करता है जो सत्कर्म करते हैं।और जब तक जीव में धन के महत्व की बुद्धि बनी रहेगी तब तक भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती। मनुष्य का सबसे बड़ा गुण सेवा है जो अन्य प्राणियों में से उसे श्रेष्ठतम बनाता है।पाराशर ने सेवा भाव का वर्णन करते हुए कहा कि सेवा मानवता की अद्भुत जीवन रेखा है, सेवा धर्म परम गहन होने से रोगियों के लिए अगम है। विवेक बुद्धि काल और समय का विचार करके सेवा धर्म का निर्वहन होता है। सेवा के समान कोई और यज्ञ नहीं है। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि "आगम निगम प्रसिद्ध पुराना", "सेवा धर्म कठिन जग्गू जाना" भारतीय चिंतन में सेवा जीवन शैली का एक विशिष्ट अंग है। पाराशर ने कहा कि सामाजिक सेवा कीर्ति बढ़ाती है, सेवा परमात्मा तत्व वरदान यज्ञ तप और त्याग है। सेवा परम तत्व सिद्ध होती है, अतः यह वरदान है सेवा धर्म में स्वार्थ ईर्ष्या के कारण विरोध आता है। सेवा का भाव परिवार और मां की गोद से उठता है। यह सबसे बड़ा संस्कार होता है। सेवाव्रती,तेजस्वी कर्मनिष्ठ, उन्नत एवं विलक्षण करते हैं ।निष्काम सेवा जीवन को प्रकाशित करती है, मानवता की सेवा ईश्वर की पूजा है, सेवा में ही जीवन है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि त्याग और सेवा भारत के दो आदर्श हैं इन देशों में उनकी गति को तीव्र कीजिए शेष अपने आप ठीक हो जाएगा।पाराशर ने कहा कि गुरु और समुद्र दोनों ही गहरे होते हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि समुद्र की गहराई में इंसान डूब जाता है ।और गुरु की गहराई में इंसान तर जाता है ।इस मौके पर सेवानिवृत जज भगवान दास गुप्ता ,वैध नंदकिशोर गंधी,ममता बंसल, सुभाष सराफ,सुनीता सौखिया, दिनेश सराफ,गीता ,,सन्तोष खण्ड़ेलवाल, मुकुट नसवारिया ,लक्ष्मी ,लक्ष्मण पंसारी सहित आदि लोग मोजूद थे।