सिलिकोसिस पीडित वीसाराम से राम भी रूठा और राज भी रूठा: भोजन से लेकर दवा तक तरसा श्रमिक परिवार
सिरोही (राजस्थान/ रमेश सुथार) पिण्डवाडा समीपवर्ती गांव कालुम्बरी (कांटल मगरी) me सिलिकोसिस पीडित परिवार बिना उपचार के तिल-तिल मरने को विवश है, लेकिन इस पीडित परिवार तक आज दिन तक प्रशासन नहीं पहुंच पाया है।
प्राप्त जानकारी बदकी देवी पत्नि वीसाराम गरासिया का परिवार करीब एक वर्ष पूर्व खुशहाल जीवन यापन कर रहा था, लेकिन बदकी देवी की प्रसव के दौरान मौत होने के साथ ही, इस परिवार पर आफत का कहर टुट पडा। और दो माह के बाद में वीराराम गरासिया भी सिलिकोसिस बिमारी से ग्रसित हो गया। जो दिन भर अपने टुटे आवास व टुटे खाट पर पड रहता है। जो दस कदम भी बडी मुश्किल से चल पा रहा है। ऐसे में उसकी तीन संतानो को लालन-पालन करना उसके बच में नहीं रह गया है। ऐसे में आस-पडौस के लोग इन छोटे-छोटे बच्चों व पीडित को खाना दे रहे है, लेकिन यह लोंग भी श्रमिक है जो इन चार सदस्यों को ज्यादा दिनों तक भरण पोषण नहीं कर पायेगें। ऐसे में इस परिवार के समक्ष भूखमरी का संकट आ सकता है। प्रशासन द्वारा समय रहते इस परिवार को सरकारी योजनाएं नहीं पहुंचाई, तो पीडित परिवार भूखमरी के साथ बिना उपचार मरने को विवश होगें। सिलिकोसिस पीडित वीसाराम ने आंखो से आंसू बहाते हुए दैनिक भास्कर को बताया कि वर्तमान में मेरी हालात इतनी दयनीय है कि बिमारी की वजह से न तो उठ पा रहा हूं और चल पाता हूं। मैं धन के अभाव में न तो मेरा उपचार करा पा रहा हूं और न बच्चों को भरण पोषण कर पा रहा हूं। मुझे व मेरे परिवार को सरकारी योजनाओं की सख्त जरूरत है।
पीडित परिवार इन योजनाओं से है वंछित
सिलिकोसिस पीडित परिवार के बच्चों को आंगनवाडी केन्द्र से भी नहीं जोडा गया है। जबकि भील बस्ती से आंगनवाडी केन्द्र भी करीब 2 किमी दुरी पर है। पीडित को श्रम विभाग द्वारा श्रमिक डायरी, खाद्-सुरक्षा, सिलिकोसिस प्रमाण पत्र, चिरंजीवी योजना, महानरेगा योजना जैसे महत्तपूर्ण योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। जबकि इस क्षेत्र में श्रमिकों व सिलिकोसिस पीडितो के लिए सरकार के साथ कई एनजीओं भी काम कर रहे है। ऐसे में इस परिवार के लिए आगे सरकार व भामाशाह परिवार को आगे आने का आवश्यकता है।
जो श्रमिक विश्व में दी पहचान, वे बेमौत मरने को विवश
पत्थर घडाई श्रमिको ने प्रदेश व देश का नाम विश्व पटल पर पहचान दी, वे आज भी आदिवासी के दुर-दराज पहाडीयों के बीच बसे गांवों में उपचार के अभाव में बेमौत मरने को विवश है, ऐसे कई परिवार है तो जिनके बच्चों की सिलिकोसिस बिमारी से पीडित होने के बाद बेमौत मर गये और उनके बच्चे आज भी बाल श्रम करने को विवश है। जबकि बडे-बडे उद्योग पतियों ने छोटी-छोटी अपंजीकृत इकाईयां नगर से लेकर गांवो में खोलकर अपने-अपने ठेकेदार बिठा दिया है। इन इकाईयों पर श्रमिको के लिए कोई सुरक्षा का इंतजाम नहीं है और न ही इन श्रमिको सरकारी लाभ मिलता है। जबकि उद्योगपति इस खेल में न केवल श्रमिको के जीवन से खेल रहे है, बल्कि आयकर की चोरी भी बडे स्तर पर हो रही है। प्रशासन को ऐसे ईकाईयों के विरूध कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए। ताकि श्रमिकों को अपने श्रम का पुरा लाभ मिल सकें। लेकिन ऐसे में मामले में एनजीओं व प्रशासन मौन है।
हंसमुख कुमार (उपखण्ड अधिकारी पिण्डवाडा) का कहना है कि -पीडित परिवार को सरकारी योजनाओं से जोडने के लिए निर्देश दिये जायेंगे। साथ ही श्रमिकों की समस्याओं का समाधान करने के लिए आवश्यक कदम उठाये जायेंगें।